माना कि वक्त मुश्किल था...
मुश्किल थी, इंत्तेहां की घड़ी,
पर ये दोस्ती तोड़ दें...
हम दोनों को ये हक नहीं।।
जब ख्वाब तुम्हारा टूट रहा था...
रेत की तरह सब छूट रहा था,
तब पीछे रहा मैं...
इक कदम बढ़ ना पाया,
हां तन्हा लड़ीं तुम...
मैं लड़ ना पाया।।
शिकायतें, शिकवें सब तेरे...
सुनना चाहता हूं,
आंखों से गिरे जो मोती तेरे...
चुनना चाहता हूं,
आज दोस्ती निभा नहीं पाऊंगा...
जो निभाना चाहता हूं।।
माफ़ मुझे कर देना तुम...
माफ़ अगर कर पाओ तो,
आज आने की उम्मीद जरा-सी मध्धम है...
दौड़ा आऊंगा कल अगर बुलाओ तो।।
खिजां में महका चमन हो जैसे...
बाहारों को महका दें,
दोस्ती है एक हवा...
है कसम इसी दोस्ती की,
भूल जा उसे जो हुआ।।
- निकिता रावत।
लफ़्ज़ों की जुबां ✍️
©Nikita Rawat
कसम दोस्ती की