किसी ने मेहताब देखा है,
किसी ने किताब देखा है।
दोनों ने हीं रात-रात भर जग,
कितने ख्वाब देखा है।
©साक्षी
किसी ने मेहताब देखा है,
किसी ने किताब देखा है।
दोनों ने हीं रात-रात भर जग,
कितने ख्वाब देखा है।
मेहताब के आशिक है कई,
मंजिल के भी मुसाफिर कई।
कोई लूटने को तैयार बैठा है,