मेरे मकान में कमरा
उसका आज भी है
ऐसा इश्क़ दुनिया में
गुनाह आज भी है
हक़ से नहीं आता वो
अब दहलीज़ पे मेरी
ऐसे हालात मुझपे
सज़ा आज भी है
रखता नहीं मैं बात
अपनी सामने उसके
इतना फासला कैसे
दर्मियां आज भी है
ख़ामोश कर दिया सबने
उसके आमद पे मुझे
दिल में उसके जाने की
सिसकियां आज भी है
©shaghaf Nawaz
kamre
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