दर्द,
तकलीफ,
चुभन,
टूटना,
बिखरना,
ये जो है ना देखा जाए तो सब एक ही है
लेकिन इन सबका अपना अलग-अलग महत्व भी है,
जैसे कि जब हमें कोई दर्द देता है तो वो हम सहते हैं
अकेले ही अकेले और हम किसी से कुछ कहना भी नहीं चाहते हैं,
बस इसी वजह से ये दर्द हमारा धीरे-धीरे तकलीफ में बदल जाता है फिर हमें उस प्रकार की कोई भी चीज या शख्स हो हमें एक जैसा लगता है और उससे हमें बहुत तकलीफ होने लगती है,
और बात यहीं पर खत्म नहीं होती फिर आती है चुभन हमें ऐसा लगता है कि हमें उस दर्द के तकलीफ की वजह से अंदर ही अंदर चुभन होने लगती है वो चुभन हमें धीरे-धीरे खा जाती है,
जैसे-जैसे ये चुभन बढ़ती है फिर हम अंदर से एकदम टूट जाते हैं फिर ना हमें किसी से बात करना अच्छा लगता है और ना ही उसकी बात सुनने का मन करता है,
इसी तरह से टूटने के बाद ही हम बिल्कुल बिखर कर रह जाते हैं और हम उसी तरह ही रहना चाहते हैं अगर कोई हमें अपने आप में समेटना भी चाहता है तो हम उससे भी दूर रहना चाहते हैं |
©ROHAN BISHT
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