मैं पता नही किस आश में बैठा हुं,
खुद बेख्याल होकर आपके खयाल में बैठा हुं।
आपने तो सारे वक्त के हर मंजर को,
अपने इन चूड़ियों में पिरोए रखीं हैं,
इनकी खंखानहट को को सुनने के लिए तो
ये दिल भी खूब तब्ज्जो चाहता है ,
और इनका इजहार करना भी इकबाल होगा मेरे लिए,
इन आंखों की नुमाईश भी फकत कुछ यही चाहता है।
समेट लो एक टूटा खिलौना समझ कर मुझे ,
जोड़ना या तोड़ना ये तो तुम्हारे हाथ में ही है।
©Daya Triapthi
#Flower