ये मजबूरियां ये दुख ये फ़साद सब एक तरफ
तू नही है तेरे जाने का गम एक तरफ
आंख में तेजाब डाल कर सो भी जाउ तो
निगाहों का रुख रहता है उस तरफ
ये हसरत, ये शौक जो दिल ने पाले है
उन्हें निकाले तो कैसे और रखे किस तरफ
अधूरी मंजिल को सफर मिला ,मुद्दतो बाद हमसफर मिला
गुफ़्तगू करनी है अब कैसे जाए उस तरफ
लाख दफ़ा लानत हो उस शख्स पर जिसने बनाई ये रीतियाँ
मर्दाना बैठेंगे इस तरफ ,जनाना बैठेंगे उस तरफ
--वीर
©krishna Baghel
# a Little change
#InspireThroughWriting