जिंदगी सफर है, इसको गुज़र जाना है,
बचपन, जवानी, बुढ़ापा फिर मर जाना है।
आ गया हूं बोहोत दूर चलते चलते,
परेशान हूं कि अब किधर जाना है।
ये गुमां ए हुस्न किस बात का है तुम्हे,
ये गुलशन है, इक दिन इसे भी झड़ जाना है।
ये दौलत, ये शौहरत कुछ पल के साथी है,
सुबह होते ही परिंदो को उड़ जाना है।
अरसा हुआ मुहब्बत में भटकते हुए "मिश्रा",
थक चुका हूं बहुत, मुझे अब घर जाना है।
©Sk mishra
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