कहां गुम हो गई हैं मानवता आज के इस दौर में खरीददा | हिंदी कविता

"कहां गुम हो गई हैं मानवता आज के इस दौर में खरीददारों की नज़र में आ चुकी है जिस्म और जान भी सौदा किया जा रहा हैं मासुमियत का आज के इस दौर में गुड्डे गुड़ियों से खेलने के उम्र में बाज़ार के फेहरिस्त में शामिल किया जा रहा नन्हीं सी पारियों को मोल भाव किया जा रहा उन मासूमों का जिनको इस बात की तनिक इल्म भी नहीं होता क्या बाज़ार हैं होता क्या है सौदा आज के इस दौर में चंद से सिक्कों के खातिर समझौता किया जा रहा किसी की मासूमियत का बेचा जा रहा मासूमों को बाज़ार में आज के इस दौर में"

 कहां गुम हो गई हैं
 मानवता आज के इस दौर में
खरीददारों की नज़र में आ चुकी है
 जिस्म और जान भी
सौदा किया जा रहा हैं
 मासुमियत का आज के इस दौर में
गुड्डे गुड़ियों से खेलने के उम्र में 
बाज़ार के फेहरिस्त में
शामिल किया जा रहा 
नन्हीं सी पारियों को
मोल भाव किया जा रहा 
उन मासूमों का 
जिनको इस बात की 
तनिक इल्म भी नहीं 
होता क्या बाज़ार हैं
 होता क्या है सौदा
 आज के इस दौर में
चंद से सिक्कों के
खातिर समझौता किया जा रहा
किसी की मासूमियत का
बेचा जा रहा मासूमों को
बाज़ार में 
आज के इस दौर में

कहां गुम हो गई हैं मानवता आज के इस दौर में खरीददारों की नज़र में आ चुकी है जिस्म और जान भी सौदा किया जा रहा हैं मासुमियत का आज के इस दौर में गुड्डे गुड़ियों से खेलने के उम्र में बाज़ार के फेहरिस्त में शामिल किया जा रहा नन्हीं सी पारियों को मोल भाव किया जा रहा उन मासूमों का जिनको इस बात की तनिक इल्म भी नहीं होता क्या बाज़ार हैं होता क्या है सौदा आज के इस दौर में चंद से सिक्कों के खातिर समझौता किया जा रहा किसी की मासूमियत का बेचा जा रहा मासूमों को बाज़ार में आज के इस दौर में

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