Manish Kumar

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मेरी रुचि कविता और शायरी लिखने की है मै आशा करता हूं आप सभी को मेरा प्रयास पसंद आयेगा यदि कोई परामर्श किन्ही के पास हो तो कृप्या कर मुझे अवगत कराने की कृपा कर धन्यवाद्

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होली अाई रंग लगा कर चला गया थोड़ी सी ही सही दिल को गुलाबी चेहरे को थोड़ा हरा कर गया होली अाई रंग लगा कर चला गया ज़िंदगी में थोड़ी देर के लिए पर तनिक सी खुशियों को फ़ैला गया होली अाई रंग लगा कर चला गया मन को मद मस्त कर उमंगों की ओर थोड़ी सी एक छोटी सी कदम बढ़ा कर चला गया होली अाई रंग लगा कर चला गया इस भागदौड़ की जिंदगी में एक दिन के लिए ही सही लाल गुलाबी कर गया होली अाई लगा कर चला गया मन के सारे मैल को मिटा कर थोड़ी सी सभी के चेहरों पर एक मंद मंद मुष्कान को फ़ैला कर चला गया होली अाई रंग लगा कर चला गया हर मनभेद हर मतभेद को भुला कर मन मस्तिष्क में एक दिन का हर्षो्लास का एहसास दिला कर चला गया होली अाई रंग लगा कर चला गया

#कविता #happyholi #kavita #Rang  होली अाई रंग लगा कर चला गया
थोड़ी सी ही सही दिल को गुलाबी
चेहरे को थोड़ा हरा कर गया
होली अाई रंग लगा कर चला गया
ज़िंदगी में थोड़ी देर के लिए
पर तनिक सी खुशियों को फ़ैला गया
होली अाई रंग लगा कर चला गया
मन को मद मस्त कर
उमंगों की ओर थोड़ी सी
एक छोटी सी कदम बढ़ा कर चला गया 
होली अाई रंग लगा कर चला गया
इस भागदौड़ की जिंदगी में
एक दिन के लिए ही सही
लाल गुलाबी कर गया
होली अाई लगा कर चला गया
मन के सारे मैल को मिटा कर थोड़ी सी
सभी के चेहरों पर एक मंद मंद मुष्कान को
फ़ैला कर चला गया 
होली अाई रंग लगा कर चला गया
हर मनभेद हर मतभेद को भुला कर 
मन मस्तिष्क में एक दिन का
हर्षो्लास का एहसास दिला कर चला गया
होली अाई रंग लगा कर चला गया
#shyari #ishq

#ishq#shyari

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हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल अब बहुत हो चुका है आश की आशा किसी गैरों से सब मृतप्राय से हो चुके है यहां गूंगा बेहरा हो चुका हैं समाज सारा हर कोई निशब्द खड़ा है टकटकी लगाएं बस बहुत हो चुका है हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल कब तक आस जोहती रहेंगी गूंगी बहरी सत्ता के दलालों से कब तक ख़ुद को इंसाफ़ के नाम पर जलील करवाती रहेंगी उस काली पट्टी बंधी मूर्ति के रखवालों से बस बहुत हो चुका हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल नोच डाल तेरे तरफ़ उठने वाले उन वहसी आंखों को काट डाल उन हाथों को जो बिना इजाज़त तेरे तरफ़ उठे तोड़ डाल उन पैरों को जो तेरी तरफ़ बढ़े बस बहुत हो चुका हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल

#nayikavita #kavita #Naari #poem  हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल
अब बहुत हो चुका है 
आश की आशा किसी गैरों से
सब मृतप्राय से हो चुके है यहां
गूंगा बेहरा हो चुका हैं
समाज सारा
हर कोई निशब्द खड़ा है
टकटकी लगाएं
बस बहुत हो चुका है
हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल
कब तक आस जोहती रहेंगी
गूंगी बहरी सत्ता के दलालों से
कब तक ख़ुद को
इंसाफ़ के नाम पर जलील
करवाती रहेंगी
उस काली पट्टी बंधी
मूर्ति के रखवालों से
बस बहुत हो चुका
हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल
नोच डाल तेरे तरफ़ उठने वाले
उन वहसी आंखों को
काट डाल उन हाथों को
जो बिना इजाज़त तेरे
तरफ़ उठे
तोड़ डाल उन पैरों को
जो तेरी तरफ़ बढ़े
बस बहुत हो चुका
हे नारी तू वस्त्र नहीं अब शस्त्र संभाल
#शायरी #sadShayari

#sadShayari

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कहां गुम हो गई हैं मानवता आज के इस दौर में खरीददारों की नज़र में आ चुकी है जिस्म और जान भी सौदा किया जा रहा हैं मासुमियत का आज के इस दौर में गुड्डे गुड़ियों से खेलने के उम्र में बाज़ार के फेहरिस्त में शामिल किया जा रहा नन्हीं सी पारियों को मोल भाव किया जा रहा उन मासूमों का जिनको इस बात की तनिक इल्म भी नहीं होता क्या बाज़ार हैं होता क्या है सौदा आज के इस दौर में चंद से सिक्कों के खातिर समझौता किया जा रहा किसी की मासूमियत का बेचा जा रहा मासूमों को बाज़ार में आज के इस दौर में

#कविता #विचार  कहां गुम हो गई हैं
 मानवता आज के इस दौर में
खरीददारों की नज़र में आ चुकी है
 जिस्म और जान भी
सौदा किया जा रहा हैं
 मासुमियत का आज के इस दौर में
गुड्डे गुड़ियों से खेलने के उम्र में 
बाज़ार के फेहरिस्त में
शामिल किया जा रहा 
नन्हीं सी पारियों को
मोल भाव किया जा रहा 
उन मासूमों का 
जिनको इस बात की 
तनिक इल्म भी नहीं 
होता क्या बाज़ार हैं
 होता क्या है सौदा
 आज के इस दौर में
चंद से सिक्कों के
खातिर समझौता किया जा रहा
किसी की मासूमियत का
बेचा जा रहा मासूमों को
बाज़ार में 
आज के इस दौर में

अभी सूरज नहीं डूबा, जरा-सी शाम होने दो अभी सूरज नहीं डूबा, ज़रा सी शाम होने तो दो थोड़ी सी गेरुआ छटा, आसमां में बेखरेने तो दो थोड़ी सी शीतलता तो, मौसम में बिखरने तो दो रात को आने के इंतजार में, शब्र का बांध टूटने तो दो मन में एक सुकुन का एहसास, हिलोरें उठने तो दो थोड़ी सबके दिल में मानवता, को बचाने को लेकर इंसानियत की अलख जगाने, को लेकर थोड़ी चिंगारी भरकाने तो दो

#कविता #indianpoetry #HindiPoem #kavita  अभी सूरज नहीं डूबा, जरा-सी शाम होने दो अभी सूरज नहीं डूबा, 
ज़रा सी शाम होने तो दो
थोड़ी सी गेरुआ छटा, 
आसमां में बेखरेने तो दो
थोड़ी सी शीतलता तो, 
मौसम में बिखरने तो दो
रात को आने के इंतजार में, 
शब्र का बांध टूटने तो दो
मन में एक सुकुन का एहसास,
 हिलोरें उठने तो दो
थोड़ी सबके दिल में मानवता,
को बचाने को लेकर
इंसानियत की अलख जगाने,
को लेकर थोड़ी चिंगारी
भरकाने तो दो
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