जीता रहा हूँ मैं खुद की आवाज़ को सुनकर चौंकता रहा | हिंदी कविता

"जीता रहा हूँ मैं खुद की आवाज़ को सुनकर चौंकता रहा हूँ मैं, इन सन्नाटों से कहकर ही तो सोचता रहा हूँ मैं। इतनी फुर्सत नहीं की ठहराव ला सकूँ, हर बार पुराने ज़ख्मों को कुरेदता रहा हूँ मैं। चलते रहा रास्तों में, बनाए किसी और के, हर वक़्त कर्ज के बोझ में दबता रहा हूँ मैं। हिदायत बेचने के लिए ही बात करते हो तुम, ठहरी हुई जमीन में बहता रहा हूँ मैं। नकाबों कि तरफदारी है, चहरों पर सवाल, कुछ रंग के घुटनों से मरता रहा हुं मैं। क्या धर्म मेरा था, किस दर से तुम्हारा है, कुछ छोटे से कागजों पर बिकता रहा हूँ मैं। लकीरें डाली है अपनी जमीन में, उसकी जमीन में, मुठ्ठी भर जमीन के लिए, कटता रहा हूँ मैं। वक्त के गुलामों को और क्या बंदिश, न जाने कितनों के पिंजरों में जीता रहा हूँ मैं। -ओम"

 जीता रहा हूँ मैं 
खुद की आवाज़ को सुनकर चौंकता रहा हूँ मैं,
इन सन्नाटों से कहकर ही तो सोचता रहा हूँ मैं।
इतनी फुर्सत नहीं की ठहराव ला सकूँ,
हर बार पुराने ज़ख्मों को कुरेदता रहा हूँ मैं।

चलते रहा रास्तों में, बनाए किसी और के,
हर वक़्त कर्ज के बोझ में दबता रहा हूँ मैं।
हिदायत बेचने के लिए ही बात करते हो तुम,
ठहरी हुई जमीन में बहता रहा हूँ मैं।

नकाबों कि तरफदारी है, चहरों पर सवाल,
कुछ रंग के घुटनों से मरता रहा हुं मैं।
क्या धर्म मेरा था, किस दर से तुम्हारा है,
कुछ छोटे से कागजों पर बिकता रहा हूँ मैं।

लकीरें डाली है अपनी जमीन में, उसकी जमीन में,
मुठ्ठी भर जमीन के लिए, कटता रहा हूँ मैं।
वक्त के गुलामों को और क्या बंदिश,
न जाने कितनों के पिंजरों में जीता रहा हूँ मैं।
-ओम

जीता रहा हूँ मैं खुद की आवाज़ को सुनकर चौंकता रहा हूँ मैं, इन सन्नाटों से कहकर ही तो सोचता रहा हूँ मैं। इतनी फुर्सत नहीं की ठहराव ला सकूँ, हर बार पुराने ज़ख्मों को कुरेदता रहा हूँ मैं। चलते रहा रास्तों में, बनाए किसी और के, हर वक़्त कर्ज के बोझ में दबता रहा हूँ मैं। हिदायत बेचने के लिए ही बात करते हो तुम, ठहरी हुई जमीन में बहता रहा हूँ मैं। नकाबों कि तरफदारी है, चहरों पर सवाल, कुछ रंग के घुटनों से मरता रहा हुं मैं। क्या धर्म मेरा था, किस दर से तुम्हारा है, कुछ छोटे से कागजों पर बिकता रहा हूँ मैं। लकीरें डाली है अपनी जमीन में, उसकी जमीन में, मुठ्ठी भर जमीन के लिए, कटता रहा हूँ मैं। वक्त के गुलामों को और क्या बंदिश, न जाने कितनों के पिंजरों में जीता रहा हूँ मैं। -ओम

#जीता_रहा_हूं_मैं

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