Praveen Chandra Tiwari

Praveen Chandra Tiwari Lives in Pithoragarh, Uttarakhand, India

मैं तो मुसाफ़िर हूँ, रास्तों से दोस्ती करते चल रहा हूँ, लोग पूछते रहते हैं की मंज़िल की ख़ता क्या है। Instagram: @omkeshabd Facebook: @omkikalamse

https://omkeshabd.wordpress.com/

  • Latest
  • Popular
  • Video

जीता रहा हूँ मैं खुद की आवाज़ को सुनकर चौंकता रहा हूँ मैं, इन सन्नाटों से कहकर ही तो सोचता रहा हूँ मैं। इतनी फुर्सत नहीं की ठहराव ला सकूँ, हर बार पुराने ज़ख्मों को कुरेदता रहा हूँ मैं। चलते रहा रास्तों में, बनाए किसी और के, हर वक़्त कर्ज के बोझ में दबता रहा हूँ मैं। हिदायत बेचने के लिए ही बात करते हो तुम, ठहरी हुई जमीन में बहता रहा हूँ मैं। नकाबों कि तरफदारी है, चहरों पर सवाल, कुछ रंग के घुटनों से मरता रहा हुं मैं। क्या धर्म मेरा था, किस दर से तुम्हारा है, कुछ छोटे से कागजों पर बिकता रहा हूँ मैं। लकीरें डाली है अपनी जमीन में, उसकी जमीन में, मुठ्ठी भर जमीन के लिए, कटता रहा हूँ मैं। वक्त के गुलामों को और क्या बंदिश, न जाने कितनों के पिंजरों में जीता रहा हूँ मैं। -ओम

#जीता_रहा_हूं_मैं #कविता  जीता रहा हूँ मैं 
खुद की आवाज़ को सुनकर चौंकता रहा हूँ मैं,
इन सन्नाटों से कहकर ही तो सोचता रहा हूँ मैं।
इतनी फुर्सत नहीं की ठहराव ला सकूँ,
हर बार पुराने ज़ख्मों को कुरेदता रहा हूँ मैं।

चलते रहा रास्तों में, बनाए किसी और के,
हर वक़्त कर्ज के बोझ में दबता रहा हूँ मैं।
हिदायत बेचने के लिए ही बात करते हो तुम,
ठहरी हुई जमीन में बहता रहा हूँ मैं।

नकाबों कि तरफदारी है, चहरों पर सवाल,
कुछ रंग के घुटनों से मरता रहा हुं मैं।
क्या धर्म मेरा था, किस दर से तुम्हारा है,
कुछ छोटे से कागजों पर बिकता रहा हूँ मैं।

लकीरें डाली है अपनी जमीन में, उसकी जमीन में,
मुठ्ठी भर जमीन के लिए, कटता रहा हूँ मैं।
वक्त के गुलामों को और क्या बंदिश,
न जाने कितनों के पिंजरों में जीता रहा हूँ मैं।
-ओम

चमक उठा अपना घर रोशनी से, अँधेरे शिकायत करने लगे दूर जा कर। -ओम

 चमक उठा अपना घर  रोशनी से,
अँधेरे शिकायत करने लगे दूर जा कर।
-ओम

चमक उठा अपना घर रोशनी से, अँधेरे शिकायत करने लगे दूर जा कर। -ओम

7 Love

ये ही वक्त है ज़िन्दगी से हैरान होने का, लिफाफे की दिखावट से ब्याज नहीं बदलता है, एक नज़र खोल के सोना चाहिए हम सबको, हद से ज्यादा ईमानदार कहीं नही चलता है। -ओम

#शायरी  ये ही वक्त है ज़िन्दगी से हैरान होने का,
लिफाफे की दिखावट से ब्याज नहीं बदलता है,
एक नज़र खोल के सोना चाहिए हम सबको,
हद से ज्यादा ईमानदार कहीं नही चलता है।
-ओम

ये ही वक्त है ज़िन्दगी से हैरान होने का, लिफाफे की दिखावट से ब्याज नहीं बदलता है, एक नज़र खोल के सोना चाहिए हम सबको, हद से ज्यादा ईमानदार कहीं नही चलता है। -ओम

7 Love

खुद की नज़र में धूल देख कर ज़िन्दगी पर बात कर, समाज के नहीं, खुद के अहम को पोछने पर बात कर। ज़बान मिली है, गनीमत है, महर है रब की, तू फूलों को भूल जा, काटों को छू के बात कर। - ओम

#शायरी #धूल #अहम  खुद की नज़र में धूल देख कर ज़िन्दगी पर बात कर,
समाज के नहीं, खुद के अहम को पोछने  पर बात कर।
ज़बान मिली है, गनीमत है, महर है रब की,
तू फूलों को भूल जा, काटों को छू के बात कर।
- ओम

हाथ में मसाल लिए ही आदमी निकलता होगा, क्या इसी लौ से इसका दिल भी पिघलता होगा? मारा जाता है हर तरफ से इसका ढलता शरीर, क्या इसी असर के लिए ये कोख़ से निकलता होगा? क्या ये जरूरी नहीं की उसके घर से उसका बच्चा सीखे, वो उसी तालीम से ज़िन्दगी को परखता होगा, पर चाकू इस नुक्कड़ में है, ज़हर फैला है उस गली में, क्या इसी डर से वो बच्चों को पकड़ता होगा? -ओम

#कविता  हाथ में मसाल लिए ही आदमी निकलता होगा,
 क्या इसी लौ से इसका दिल भी पिघलता होगा?
 मारा जाता है हर तरफ से इसका ढलता शरीर,
 क्या इसी असर के लिए ये कोख़ से निकलता होगा?
क्या ये जरूरी नहीं की उसके घर से उसका बच्चा सीखे,
वो उसी तालीम से ज़िन्दगी को परखता होगा, पर 
चाकू इस नुक्कड़ में है, ज़हर फैला है उस गली में,
क्या इसी डर से वो बच्चों को पकड़ता होगा?
-ओम

हाथ में मसाल लिए ही आदमी निकलता होगा, क्या इसी लौ से इसका दिल भी पिघलता होगा? मारा जाता है हर तरफ से इसका ढलता शरीर, क्या इसी असर के लिए ये कोख़ से निकलता होगा? क्या ये जरूरी नहीं की उसके घर से उसका बच्चा सीखे, वो उसी तालीम से ज़िन्दगी को परखता होगा, पर चाकू इस नुक्कड़ में है, ज़हर फैला है उस गली में, क्या इसी डर से वो बच्चों को पकड़ता होगा? -ओम

8 Love

ये ज़रूरी नहीं की आसमान हो उड़ान मेरी, हर ऊँचाई में कुछ ज़मीन होनी चाहिए -ओम

#उड़ान‌ #शायरी #ज़मीन  ये ज़रूरी नहीं की आसमान हो उड़ान मेरी,
हर ऊँचाई में कुछ ज़मीन होनी चाहिए 
-ओम
Trending Topic