दूर कहीं खड़ी तू दिखती हैं
ना जाने कौनसी कमी तुझको खलती हैं
खामोशी की चादर में लिपटे रहती हैं
क्यूँ तू मुझको कोई आवाज देती नही हैं
आहट तेरे पैरो की अब होती नही हैं
क्यू बेडियों में तू जकड़ी पड़ी हैं
परवाज़ अब तेरी दिखती नही हैं
क्यू हसरतों को तू पूरा करती नही हैं
मिलने की तरह तू क्यू मुझसे मिलती नही हैं
ऐ ज़िंदगी क्या तेरा मेरा रिस्ता ही नही हैं
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