प्रेम परिपक्व होकर
पिता बन जाता है,
दुख परिपक्व होकर
'अनुभव'
बेईमानी परिपक्व होकर
'सत्यनिष्ठा' बन जाती है
अतः प्रेम सिर्फ प्रेम रहता है
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परिपक्व होना निश्चित है
हर वस्तु के लिए,
प्रेम परिपक्व होकर
पिता बन जाता है,
दुख परिपक्व होकर
'अनुभव'