White बदनसीब शायर में चिराग़ का वो हिस्सा हूं जि | हिंदी शायरी

"White बदनसीब शायर में चिराग़ का वो हिस्सा हूं जिसमें हमेशा अंधेरा होता है। जहां सूरज की रौशनी नहीं जाती वो घर मेरा होता है। में वो शजर हूं जिस पे किसी मौसम फल नहीं लगते। मैं वो कश्ती हूं जिसे डूबने में दो पल नहीं लगते। मैं वो मिट्टी हूं जिसे लोग कब्रिस्तान में झाड़ आते हैं। मैं सफर की वह मुश्किल हूं जिसमें पहाड़ आते हैं। मुझे तोड़कर मांझी ने तारीख में अपना नाम लिखाया है। मैं वो खंडर हूं जिस पर बुरी रूहों का साया है। मैं वो फूल हूं जिससे कब्रों को सजाया जाता है। मैं वो पानी हूं जिससे मुर्दों को नहलाया जाता है। मैं वो दरिया हूं जिसमें लोग अपने पाप धोते हैं। मैं वो आस्तीन हूं जिसमें सांप होते हैं। मैं वो कहानी हूं जिससे डर कर बच्चे सोते हैं मैं वो ख्वाब हूं जो कभी पूरे नहीं होते हैं। मैं वो बंजर खेत हूं जिसमें कोई फसल नहीं होती । मैं वो आखिरी रात हूं जिसके बाद कल नहीं होती। मैं वो सलीब हूं जिस पर मसीह को चढ़ाया जाता है। मैं वो रावण हूं जिसकी मौत का जश्न मनाया जाता है। इतनी खामी मुझ में हैं के कोई शुमार नहीं कर सकता। मजीद ये के शायर हूं सो मुझे कोई प्यार नहीं कर सकता। मैं अपनी कहानी को लफ्जों में पिरो नहीं सकता । मैं वो बदनसीब शायर हूं जो मशहूर हो नहीं सकता। ©Mohd Shuaib Malik~सनम"

 White बदनसीब शायर 

में चिराग़ का वो हिस्सा हूं जिसमें हमेशा अंधेरा होता है।
जहां सूरज की रौशनी नहीं जाती वो घर मेरा होता है।
में वो शजर हूं जिस पे किसी मौसम फल नहीं लगते।
मैं वो कश्ती हूं जिसे डूबने में दो पल नहीं लगते।
मैं वो मिट्टी हूं जिसे लोग कब्रिस्तान में झाड़ आते हैं।
मैं सफर की वह मुश्किल हूं जिसमें पहाड़ आते हैं।
मुझे तोड़कर मांझी ने तारीख में अपना नाम लिखाया है।
मैं वो खंडर हूं जिस पर बुरी रूहों का साया है।
मैं वो फूल हूं जिससे कब्रों को सजाया जाता है।
मैं वो पानी हूं जिससे मुर्दों को नहलाया जाता है। 
मैं वो दरिया हूं जिसमें लोग अपने पाप धोते हैं। 
मैं वो आस्तीन हूं जिसमें सांप होते हैं।
मैं वो कहानी हूं जिससे डर कर बच्चे सोते हैं 
मैं वो ख्वाब हूं जो कभी पूरे नहीं होते हैं। 
मैं वो बंजर खेत हूं जिसमें कोई फसल नहीं होती ।
मैं वो आखिरी रात हूं जिसके बाद कल नहीं होती। 
मैं वो सलीब हूं जिस पर मसीह को चढ़ाया जाता है। 
मैं वो रावण हूं जिसकी मौत का जश्न मनाया जाता है। 
इतनी खामी मुझ में हैं के कोई शुमार नहीं कर सकता। 
मजीद ये के शायर हूं सो मुझे कोई प्यार नहीं कर सकता।
मैं अपनी कहानी को लफ्जों में पिरो  नहीं सकता ।
मैं वो बदनसीब शायर हूं जो मशहूर हो नहीं सकता।

©Mohd Shuaib Malik~सनम

White बदनसीब शायर में चिराग़ का वो हिस्सा हूं जिसमें हमेशा अंधेरा होता है। जहां सूरज की रौशनी नहीं जाती वो घर मेरा होता है। में वो शजर हूं जिस पे किसी मौसम फल नहीं लगते। मैं वो कश्ती हूं जिसे डूबने में दो पल नहीं लगते। मैं वो मिट्टी हूं जिसे लोग कब्रिस्तान में झाड़ आते हैं। मैं सफर की वह मुश्किल हूं जिसमें पहाड़ आते हैं। मुझे तोड़कर मांझी ने तारीख में अपना नाम लिखाया है। मैं वो खंडर हूं जिस पर बुरी रूहों का साया है। मैं वो फूल हूं जिससे कब्रों को सजाया जाता है। मैं वो पानी हूं जिससे मुर्दों को नहलाया जाता है। मैं वो दरिया हूं जिसमें लोग अपने पाप धोते हैं। मैं वो आस्तीन हूं जिसमें सांप होते हैं। मैं वो कहानी हूं जिससे डर कर बच्चे सोते हैं मैं वो ख्वाब हूं जो कभी पूरे नहीं होते हैं। मैं वो बंजर खेत हूं जिसमें कोई फसल नहीं होती । मैं वो आखिरी रात हूं जिसके बाद कल नहीं होती। मैं वो सलीब हूं जिस पर मसीह को चढ़ाया जाता है। मैं वो रावण हूं जिसकी मौत का जश्न मनाया जाता है। इतनी खामी मुझ में हैं के कोई शुमार नहीं कर सकता। मजीद ये के शायर हूं सो मुझे कोई प्यार नहीं कर सकता। मैं अपनी कहानी को लफ्जों में पिरो नहीं सकता । मैं वो बदनसीब शायर हूं जो मशहूर हो नहीं सकता। ©Mohd Shuaib Malik~सनम

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