क्या सच में हम तुमको भुला बैठे है
बहते हुए आँशु को पलकों से छुपा बैठे है
कोई तो बातऐ की क्या भूल हुई हमसे
हर राज बताया और एक राज छुपा बैठे है
बात सबकी नहीं लाग्जिशे बस उन गुलों की है
जो अपने बगीचे से खुश्बू को छुपा बैठे है
नेको को अच्छे काम पर किस बात का घमंड
जब सबसे नेक गुनाहगारो को को गले लगा बैठे है
साहिबे लौलक से सैफ इश्क़ ही ऐसा है
इक ग़म को जो पाया तो हर गम को भुला बैठे है
writter✍️-saif raza khan.s
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