तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी राह-ए-ख़ुदा में आकर तो देखो
तड़पने पे मेरे ना फिर तुम हँसोगे जरा चराग़-ए-इश़्क़-ए-नबी दिल में जलाकर तो देखो
तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी राह-ए-ख़ुदा में आकर तो देखो
ना उम्मीदी का ख़ुदा से तवक़्क़ू नहीं है
मगर एक बार दुआ के लिए हाथ उठाकर तो देखो
ज़माने को अपना बनाकर तो देखा
ह़बीब-ए-ख़ुदा को भी तुम अपना बनाकर तो देखो
तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी राह-ए-ख़ुदा में आकर तो देखो
ख़ुदा के लिए अब छोड़ दो ये गुमरही तुम
कि क़ाबिल-ए-इबादत फ़क़त तन्हा ख़ुदा है, नहीं ग़ैर कोई
श़ब-ए-क़दर भी है लब पे क्यों गुनाहों का चर्चा
जरा अपने लब पे ज़िक्र सल्ले अला का सजाकर तो देखो
तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी राह-ए-ख़ुदा में आकर तो देखो
करते हो सुकून-ए-दिल कि गर तुम जो चाहत
तो सज्दे में अपने सर को झुकाकर तो देखो
चाहते हो अगर कि तुम्हे मिले दीन-व-दुनिया की दौलत
तो ग़रीबों पे अपनी दौलत लुटाकर तो देखो
तुम्हे दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी राह-ए-ख़ुदा में आकर तो देखो
गर जो है ख़्वाब में दीदार-ए-नबी की तमन्ना
तो लबों पे अपनी दरूदो की डाली सजाकर तो देखो
ख़ुदा की तुम पे हर सू इनायत भी होगी
जरा अपनी गुनाहों से तुम बाज़ आकर तो देखो
तुम्हे दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी राह-ए-ख़ुदा में आकर तो देखो
तड़पने पे मेरे ना फिर तुम हँसोगे जरा चराग़-ए-इश़्क़-ए-नबी दिल में जलाकर तो देखो
तुम्हे दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी राह-ए-ख़ुदा में आकर तो देखो
मो.इक्साद अंसारी
MD Iksad Ansari