हालात-ए-आम-ओ-ख़ास समझते है।
हम दूर होकर भी एहसास समझते है।
हमें आप दिल-ओ-जां से अज़ीज़ हो।
हां मगर नहीं हो मेरे पास समझते है।
हर-सु हर जगह मांगते है खुदा से पर।
इश्क़ न आएगी मुझे रास समझते है।
पिता का हाथ अब सर पे नहीं मगर।
वो रहते है मेरे आस-पास समझते है।
आप ये जताने की जहमत न कीजिए।
जय है आपके कितने ख़ास समझते है।
मृत्युंजय विश्वकर्मा
©mritunjay Vishwakarma "jaunpuri"
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