रुक जाते, यूँ जाना ज़रूरी था क्या?
यूँ मेरी गज़लों में आना ज़रूरी था क्या?
हाथ तो ठीक पकड़ा था न तुमने,
फिर यूँ छोड़ जाना ज़रूरी था क्या?
किश्तों में तुमने ही जोड़ा था मुझे फिर,
हिस्सों में तोड़ जाना ज़रूरी था क्या?
मेरी रूह तक को आदत है तुम्हारी,
फिर मेरा दिल तरसाना ज़रूरी था क्या?
हम साथ एक दूजे के कितने खुश थे,
तुम्हारा हसरतों में आना ज़रूरी था क्या?
तुम्हारी नजरों से खुद को निखारा है मैंने,
यूँ मेरे अश्कों को बिखराना ज़रूरी था क्या?
Shubhra Tripathi:)
©Ibrat
#UskeHaath