ग़ज़ल - 1222 1222 2222 1222 2 हमारी जात को इतन

"ग़ज़ल - 1222 1222 2222 1222 2 हमारी जात को इतनी भी कोई हम-नवाई ना दे मियाँ गर को'ई पत्थर गिर जाये तो सु'नाई ना दे तिरी आँ'खों का कोई इक़ जादू टोना नही है राहत मैं तुमको गर जरा भी देखूँ तो फिर कुछ दिखाई ना दे ये किसने कह दिया है तुमको मा'तम है हमारे दर में ये किस'ने कह दिया कोई मुझको इक़ आश्नाई ना दे हमें कोई जहर का जाईका ले लेने दो जा'हिल कुछ मिरी माँ से कहो, कुछ दिन मुझको औ' ये दवाई ना दे मुहब्बत हार'ने वालों का कोई भी नही होता दाग़ मुझे कोई इसी आ'लम से अब दिनभर रिहाई ना दे हुआ क्या है मिरी साँसें फिरसे चलने लगी है हामिल रे जाहिल कोई आ'दम हमको इतनी भी दुहाई ना दे जला दी जाएगी हर वो तस्वीर जो तुम'सी दिखती है याँ मिरे हाथों कोई इस घर की चाबी यक पेशवाई ना दे हज़ारों के अला'मत फिर पेशानी पे दिखे थे इक़ दिन जिया कोई मुहब्बत में चलकर इक़ ना-रसाई ना दे ©Jiya Wajil khan"

 ग़ज़ल - 1222 1222 2222 1222 2
हमारी   जात   को   इतनी  भी   कोई  हम-नवाई   ना  दे
मियाँ   गर   को'ई पत्थर   गिर  जाये  तो   सु'नाई ना   दे

तिरी  आँ'खों  का  कोई   इक़  जादू  टोना  नही है राहत
मैं  तुमको गर   जरा  भी देखूँ तो फिर कुछ दिखाई ना दे

ये  किसने कह  दिया  है   तुमको  मा'तम है  हमारे दर में
ये  किस'ने  कह  दिया  कोई  मुझको  इक़  आश्नाई ना दे 

हमें  कोई जहर  का जाईका  ले   लेने  दो  जा'हिल  कुछ
मिरी  माँ  से  कहो, कुछ दिन मुझको  औ' ये  दवाई ना दे

मुहब्बत    हार'ने  वालों   का  कोई   भी  नही होता  दाग़
मुझे  कोई  इसी  आ'लम  से   अब  दिनभर  रिहाई ना दे

हुआ  क्या है  मिरी  साँसें  फिरसे चलने लगी है हामिल
रे  जाहिल  कोई  आ'दम  हमको इतनी  भी दुहाई ना दे
 
जला दी जाएगी हर वो तस्वीर जो तुम'सी दिखती है याँ
मिरे  हाथों  कोई  इस  घर की  चाबी यक   पेशवाई ना दे

हज़ारों के   अला'मत फिर पेशानी  पे दिखे थे  इक़ दिन
जिया कोई   मुहब्बत  में चलकर  इक़ ना-रसाई   ना  दे

©Jiya Wajil khan

ग़ज़ल - 1222 1222 2222 1222 2 हमारी जात को इतनी भी कोई हम-नवाई ना दे मियाँ गर को'ई पत्थर गिर जाये तो सु'नाई ना दे तिरी आँ'खों का कोई इक़ जादू टोना नही है राहत मैं तुमको गर जरा भी देखूँ तो फिर कुछ दिखाई ना दे ये किसने कह दिया है तुमको मा'तम है हमारे दर में ये किस'ने कह दिया कोई मुझको इक़ आश्नाई ना दे हमें कोई जहर का जाईका ले लेने दो जा'हिल कुछ मिरी माँ से कहो, कुछ दिन मुझको औ' ये दवाई ना दे मुहब्बत हार'ने वालों का कोई भी नही होता दाग़ मुझे कोई इसी आ'लम से अब दिनभर रिहाई ना दे हुआ क्या है मिरी साँसें फिरसे चलने लगी है हामिल रे जाहिल कोई आ'दम हमको इतनी भी दुहाई ना दे जला दी जाएगी हर वो तस्वीर जो तुम'सी दिखती है याँ मिरे हाथों कोई इस घर की चाबी यक पेशवाई ना दे हज़ारों के अला'मत फिर पेशानी पे दिखे थे इक़ दिन जिया कोई मुहब्बत में चलकर इक़ ना-रसाई ना दे ©Jiya Wajil khan

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