गर्भ से आकर उसे ही आज लज्जित कर गया.! पाप ये कैसा | हिंदी Poetry

"गर्भ से आकर उसे ही आज लज्जित कर गया.! पाप ये कैसा अरे इस आत्मा पर धर गया.! था घृणा का पात्र मैं निश्चित,अरे तो क्या हुआ? दोष मेरा था मगर आरोप तो तुम पर गया.! अपने आँचल से छिपाती अश्रु रह गई धरा, मूंदकर आँखें क्षितिज की ओर वह अंबर गया.! लज्जा मुझे आई नहीं हैवान बनने में मगर, कूदकर आकाश से प्रतिबिंब मेरा मर गया.! आज जाने क्या हुआ था भोर मेरे कक्ष में, देखकर मुझको अरे था आईना क्यूँ डर गया?"

 गर्भ से आकर उसे ही आज लज्जित कर गया.! 
पाप ये कैसा अरे इस आत्मा पर धर गया.!

था घृणा का पात्र मैं निश्चित,अरे तो क्या हुआ? 
दोष मेरा था मगर आरोप तो तुम पर गया.! 

अपने आँचल से छिपाती अश्रु रह गई धरा, 
मूंदकर आँखें क्षितिज की ओर वह अंबर गया.! 

लज्जा मुझे आई नहीं हैवान बनने में मगर, 
कूदकर आकाश से प्रतिबिंब मेरा मर गया.! 

आज जाने क्या हुआ था भोर मेरे कक्ष में, 
देखकर मुझको अरे था आईना क्यूँ डर गया?

गर्भ से आकर उसे ही आज लज्जित कर गया.! पाप ये कैसा अरे इस आत्मा पर धर गया.! था घृणा का पात्र मैं निश्चित,अरे तो क्या हुआ? दोष मेरा था मगर आरोप तो तुम पर गया.! अपने आँचल से छिपाती अश्रु रह गई धरा, मूंदकर आँखें क्षितिज की ओर वह अंबर गया.! लज्जा मुझे आई नहीं हैवान बनने में मगर, कूदकर आकाश से प्रतिबिंब मेरा मर गया.! आज जाने क्या हुआ था भोर मेरे कक्ष में, देखकर मुझको अरे था आईना क्यूँ डर गया?

#nojotohindi

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