संडे को भी समय नहीं है जिनके पास हमारी खातिर।
सब नकली बातें करते थे, सब मतलब के है भारी शातिर।
हमें कौनसा पागल तुझसे पूरे दिन बतियाना था।
तिरा पूछते और हमें तो अपना हाल बताना था।
भूल गया था मैं कि तुमपर कितनी जिम्मेदारी है।
में समझा था सबकी जैसे एक सी दुनियादारी है।
एहसासों के मर जाने का, शायद उसको एहसास नहीं होता।
प्यास पता होती है प्यासे को, सागर को एहसास नहीं होता।
- दीपक शर्मा
©deepak sharma
#thepredator