लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यूं है, इतना डर
"लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यूं है,
इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यू हैं
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए,
और सब यही आकर फिसलते क्यू हैं,
मै ना जुगनू हूं,दिया हूं,ना कोई तारा हूं,
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूं हैं।"
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यूं है,
इतना डरते हैं तो घर से निकलते क्यू हैं
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए,
और सब यही आकर फिसलते क्यू हैं,
मै ना जुगनू हूं,दिया हूं,ना कोई तारा हूं,
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूं हैं।