""बख़्त की भी रज़ा थी कि मेरी रफ़्तार ज़माने से भी तेज हो।
और मैं भी बुलंदियों की तामीर को फ़तेह कर लूं।
पर अपनों को ही गंवारा न था।
ज़िंदगी की भागती रफ्तार से अनायास ही पलट कर देखा
तो सच मे किसी का......!
D.R. Nirdhan"
"बख़्त की भी रज़ा थी कि मेरी रफ़्तार ज़माने से भी तेज हो।
और मैं भी बुलंदियों की तामीर को फ़तेह कर लूं।
पर अपनों को ही गंवारा न था।
ज़िंदगी की भागती रफ्तार से अनायास ही पलट कर देखा
तो सच मे किसी का......!
D.R. Nirdhan