जब अंग्रेजी सत्ता ने, भारत में जड़ें जमा लीं थीं
गुलाम हुए भारत वासी, में भारत माता थी
कैद हुआ था आसमान,हर ओर फिजाएं काली थीं
अत्याचारों का दौर था वो, सत्ता मद में मतवाली थी
जब सारे झंडे पस्त हुए,राज सभी के ध्वस्त हुए
कैद हुई सोने की चिड़िया, अंग्रेज लूट में मस्त हुए
तब तिरंगा सामने आया था,सोया स्वाभिमान जगाया था
मातृभूमि की आजादी को,जन जन में जोश जगाया था
थाम तिरंगा वंदे मातरम,कफन बांध कर गाया था
मातृभूमि के लिए समर्पित, सीने पर गोलियां खाते थे
नहीं तिरंगा झुकने देते थे,चाहे जान गंवाते थे
ढेरों यातनाएं सहकर भी, वंदेमातरम गाते थे
सन १८५७ से १९४७ तक, लगातार संघर्ष चले
मातृभूमि की वलिवेदी पर, असंख्य वीरों के शीश चढ़े
आखिर जन जन का प्यारा तिरंगा,लाल किले पर लहराया
खत्म हुआ गुलामी का साया,देश ने जस्न मनाया
आओ मिलकर मातृभूमि के, चरणों में शीश झुकाएं
श्रद्धा से अपने घर पर,आज तिरंगा फहराएं
आजादी के अमृत महोत्सव पर, शहीदों को शीश नवाएं
जय हिन्द 🙏
©Suresh Kumar Chaturvedi
आजादी का अमृत महोत्सव