मैं समय हुँ ....🧭 पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कू

"मैं समय हुँ ....🧭 पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे❗📝 स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें❗🔳 पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था❗📝 स्कूल में टाट पट्टी की अनुपलब्धता में घर से बोरी का टुकड़ा बगल में दबा कर ले जाना भी हमारी दिनचर्या थी. पुस्तक के बीच विद्या पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था❗📖 कक्षा छः में पहली दफा हमने अंग्रेजी का ऐल्फाबेट पढ़ा और पहली बार एबीसीडी देखी❗🔠 यह बात अलग है बढ़िया स्मॉल लेटर बनाना हमें कक्षा: छः तक भी न आया था❗🔡 करसिव राइटिंग भी हम कक्षा: आठवीं जाकर ही सीख पाये❗🔜〰➰ उस जमाने के बच्चों की अपनी एक अलग ही दुनिया थी❗🥳🤼‍♂ कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था❗📚 तख्ती पोतने की तन्मयता हमारी एक किस्म की साधना ही थी. हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था❗📓📔 हमारे समय में ट्यूशन पढ़ना हीनता का द्योतक था. अगर कोई ट्यूशन पढता था तो वह शर्तिया नालायक था❗🤓🧐 माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी. न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी. सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे❗🤔👳‍♀ सफेद शर्ट और खाकी पैंट में जब हम माध्यमिक कक्षा में पहुंचे तो पहली दफा खुद के बड़ा होने का अहसास हुआ. लेकिन पेंट पहन कर हम शर्मा रहे थे❗👖🙇 साईकिल चलाना भी हम चरणों में सीखे थे. पहले कैंची फिर डंडा और अंत में गद्दी पर बैठना आया था. फिर तो पीछे कैरियर पर बैठ कर भी हम साईकिल चला लेते थे❗🛴🚲 एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं❗🚲🕺🙋‍♂🚶 स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था. दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है. पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी❗😜😱💪🏻👨‍🏫 क्लास की पिटाई का रंज कुछ ही देर में काफूर हो जाता और हम अपने पूरे खिलंदड़ेपन से हंसते पाए जाते❗😬🤣 उस जमाने के बच्चे सपनें देखने का सलीका नही सीख पाते थे. हम अपने माता पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं क्योंकि हमें आई लव यू कहना नहीं आता था❗👨‍👩‍👦‍👦💞 आज हम गिरते सम्भलते संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं. कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं❗👥👀 हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है खुरदरी हकीकतों ने हमें पाला है❗💼🕶 कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना हमें कभी नहीं आया इस मामले में हम सदा मुर्ख ही रहे❗🥺🤕 अपना अपना प्रोब्लम झेलते हुए हम आज भी ख्वाब बुन रहे हैं. शायद ख्वाब बुनना ही हमें जिन्दा रखे है वरना जो जीवन हम जीकर आये हैं उसके सामने यह वर्तमान कुछ भी नहीं❗🔙🕒🔚 हम अच्छे थे या बुरे थे पर हम एक समय थे, काश वो समय फिर लौट आए. लेकिन हम यह भी जानते हैं वो समय कभी नहीं लौटेगा...🔘🔔🍬🍭🏏🤼‍♂🤾‍♂🤸‍♂🚴🏊🏸☎📺......,⏰ ©"Bittu"@Dil shayarana"

 मैं समय हुँ ....🧭

पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे❗📝

स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें❗🔳

पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था❗📝 

स्कूल में टाट पट्टी की अनुपलब्धता में घर से बोरी का टुकड़ा बगल में दबा कर ले जाना भी हमारी दिनचर्या थी. 

पुस्तक के बीच विद्या पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था❗📖

कक्षा छः में पहली दफा हमने अंग्रेजी का ऐल्फाबेट पढ़ा और पहली बार एबीसीडी देखी❗🔠

यह बात अलग है बढ़िया स्मॉल लेटर बनाना हमें कक्षा: छः तक भी न आया था❗🔡

करसिव राइटिंग भी हम कक्षा: आठवीं जाकर ही सीख पाये❗🔜〰➰

उस जमाने के बच्चों की अपनी एक अलग ही दुनिया थी❗🥳🤼‍♂

कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था❗📚

तख्ती पोतने की तन्मयता हमारी एक किस्म की साधना ही थी. हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था❗📓📔

हमारे समय में ट्यूशन पढ़ना हीनता का द्योतक था. अगर कोई ट्यूशन पढता था तो वह शर्तिया नालायक था❗🤓🧐

माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी. न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी. सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे❗🤔👳‍♀   

सफेद शर्ट और खाकी पैंट में जब हम माध्यमिक कक्षा में पहुंचे तो पहली दफा खुद के बड़ा होने का अहसास हुआ. लेकिन पेंट पहन कर हम शर्मा रहे थे❗👖🙇

साईकिल चलाना भी हम चरणों में सीखे थे. पहले कैंची फिर डंडा और अंत में गद्दी पर बैठना आया था. फिर तो पीछे कैरियर पर बैठ कर भी हम साईकिल चला लेते थे❗🛴🚲

एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं❗🚲🕺🙋‍♂🚶 

स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था. दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है. पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी❗😜😱💪🏻👨‍🏫

क्लास की पिटाई का रंज कुछ ही देर में काफूर हो जाता और हम अपने पूरे खिलंदड़ेपन से हंसते पाए जाते❗😬🤣

उस जमाने के बच्चे सपनें देखने का सलीका नही सीख पाते थे. हम अपने माता पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं क्योंकि हमें आई लव यू कहना नहीं आता था❗👨‍👩‍👦‍👦💞

आज हम गिरते सम्भलते संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं. कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं❗👥👀

हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है खुरदरी हकीकतों ने हमें पाला है❗💼🕶

कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना हमें कभी नहीं आया इस मामले में हम सदा मुर्ख ही रहे❗🥺🤕

अपना अपना प्रोब्लम झेलते हुए हम आज भी ख्वाब बुन रहे हैं. शायद ख्वाब बुनना ही हमें जिन्दा रखे है वरना जो जीवन हम जीकर आये हैं उसके सामने यह वर्तमान कुछ भी नहीं❗🔙🕒🔚

हम अच्छे थे या बुरे थे पर हम एक समय थे, काश वो समय फिर लौट आए. लेकिन हम यह भी जानते हैं वो समय कभी नहीं लौटेगा...🔘🔔🍬🍭🏏🤼‍♂🤾‍♂🤸‍♂🚴🏊🏸☎📺......,⏰

©"Bittu"@Dil shayarana

मैं समय हुँ ....🧭 पांचवी तक घर से तख्ती लेकर स्कूल गए थे❗📝 स्लेट को जीभ से चाटकर अक्षर मिटाने की हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें❗🔳 पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था❗📝 स्कूल में टाट पट्टी की अनुपलब्धता में घर से बोरी का टुकड़ा बगल में दबा कर ले जाना भी हमारी दिनचर्या थी. पुस्तक के बीच विद्या पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था❗📖 कक्षा छः में पहली दफा हमने अंग्रेजी का ऐल्फाबेट पढ़ा और पहली बार एबीसीडी देखी❗🔠 यह बात अलग है बढ़िया स्मॉल लेटर बनाना हमें कक्षा: छः तक भी न आया था❗🔡 करसिव राइटिंग भी हम कक्षा: आठवीं जाकर ही सीख पाये❗🔜〰➰ उस जमाने के बच्चों की अपनी एक अलग ही दुनिया थी❗🥳🤼‍♂ कपड़े के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था❗📚 तख्ती पोतने की तन्मयता हमारी एक किस्म की साधना ही थी. हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था❗📓📔 हमारे समय में ट्यूशन पढ़ना हीनता का द्योतक था. अगर कोई ट्यूशन पढता था तो वह शर्तिया नालायक था❗🤓🧐 माता पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी. न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझा थी. सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे❗🤔👳‍♀ सफेद शर्ट और खाकी पैंट में जब हम माध्यमिक कक्षा में पहुंचे तो पहली दफा खुद के बड़ा होने का अहसास हुआ. लेकिन पेंट पहन कर हम शर्मा रहे थे❗👖🙇 साईकिल चलाना भी हम चरणों में सीखे थे. पहले कैंची फिर डंडा और अंत में गद्दी पर बैठना आया था. फिर तो पीछे कैरियर पर बैठ कर भी हम साईकिल चला लेते थे❗🛴🚲 एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं❗🚲🕺🙋‍♂🚶 स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था. दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो होता क्या है. पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी❗😜😱💪🏻👨‍🏫 क्लास की पिटाई का रंज कुछ ही देर में काफूर हो जाता और हम अपने पूरे खिलंदड़ेपन से हंसते पाए जाते❗😬🤣 उस जमाने के बच्चे सपनें देखने का सलीका नही सीख पाते थे. हम अपने माता पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं क्योंकि हमें आई लव यू कहना नहीं आता था❗👨‍👩‍👦‍👦💞 आज हम गिरते सम्भलते संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं. कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं❗👥👀 हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है खुरदरी हकीकतों ने हमें पाला है❗💼🕶 कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना हमें कभी नहीं आया इस मामले में हम सदा मुर्ख ही रहे❗🥺🤕 अपना अपना प्रोब्लम झेलते हुए हम आज भी ख्वाब बुन रहे हैं. शायद ख्वाब बुनना ही हमें जिन्दा रखे है वरना जो जीवन हम जीकर आये हैं उसके सामने यह वर्तमान कुछ भी नहीं❗🔙🕒🔚 हम अच्छे थे या बुरे थे पर हम एक समय थे, काश वो समय फिर लौट आए. लेकिन हम यह भी जानते हैं वो समय कभी नहीं लौटेगा...🔘🔔🍬🍭🏏🤼‍♂🤾‍♂🤸‍♂🚴🏊🏸☎📺......,⏰ ©"Bittu"@Dil shayarana

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