गांव की दीपावली धुंधली शाम, सन्नाटे में बसी थी, ग | हिंदी Life

"गांव की दीपावली धुंधली शाम, सन्नाटे में बसी थी, गांव के रास्तों पर चुप्पी घुली थी। पर दीपों की कतारें जब जल उठीं, हर आंगन में जैसे रौनके खिल उठीं। मिट्टी की महक, वो दीये की बाती, घर-घर में छिपी सौंधी-सी प्रीति। सज गए थे चौपाल, हर घर की देहरी, जैसे स्वर्ग धरती पर ही उतर आई हो फिर। चौपाल सजा, घर-घर दीप मालाएं, मां के हाथों बनीं मिठाइयों की छाएं। बचपन की वो खुशबू, पटाखों की धूम, गांव की दीपावली, दिलों में करती है झूम। सादगी में छिपी वो अनमोल रीत, गांव की हर गली, हर आंगन, मनमीत । रोशनी की इस जगमग में, बस यही है बात, गांव की दीपावली, सबसे प्यारी, सबसे खास । ©Suraj Ray"

 गांव की दीपावली

धुंधली शाम, सन्नाटे में बसी थी, गांव के रास्तों पर चुप्पी घुली थी।

पर दीपों की कतारें जब जल उठीं,

हर आंगन में जैसे रौनके खिल उठीं।

मिट्टी की महक, वो दीये की बाती,

घर-घर में छिपी सौंधी-सी प्रीति। सज गए थे चौपाल, हर घर की देहरी,

जैसे स्वर्ग धरती पर ही उतर आई हो फिर।

चौपाल सजा, घर-घर दीप मालाएं,

मां के हाथों बनीं मिठाइयों की छाएं।

बचपन की वो खुशबू, पटाखों की धूम,

गांव की दीपावली, दिलों में करती है झूम।

सादगी में छिपी वो अनमोल रीत, गांव की हर गली, हर आंगन, मनमीत ।

रोशनी की इस जगमग में, बस

यही है बात, गांव की दीपावली, सबसे प्यारी, सबसे खास ।

©Suraj Ray

गांव की दीपावली धुंधली शाम, सन्नाटे में बसी थी, गांव के रास्तों पर चुप्पी घुली थी। पर दीपों की कतारें जब जल उठीं, हर आंगन में जैसे रौनके खिल उठीं। मिट्टी की महक, वो दीये की बाती, घर-घर में छिपी सौंधी-सी प्रीति। सज गए थे चौपाल, हर घर की देहरी, जैसे स्वर्ग धरती पर ही उतर आई हो फिर। चौपाल सजा, घर-घर दीप मालाएं, मां के हाथों बनीं मिठाइयों की छाएं। बचपन की वो खुशबू, पटाखों की धूम, गांव की दीपावली, दिलों में करती है झूम। सादगी में छिपी वो अनमोल रीत, गांव की हर गली, हर आंगन, मनमीत । रोशनी की इस जगमग में, बस यही है बात, गांव की दीपावली, सबसे प्यारी, सबसे खास । ©Suraj Ray

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