कभी अपनों से था हारा, कभी बेगानों से हारा । कभी उस
"कभी अपनों से था हारा, कभी बेगानों से हारा ।
कभी उस भीड़ ने मारा, कभी तन्हाई ने मारा ।।
रहा ज़िंदा यहां मैं जो, थी जबतक मर्ज़ी जो उसकी ।
बड़ा ही ख़ूबसूरत ज़िन्दगी का खेल है सारा ।।
P.K.Shayar"
कभी अपनों से था हारा, कभी बेगानों से हारा ।
कभी उस भीड़ ने मारा, कभी तन्हाई ने मारा ।।
रहा ज़िंदा यहां मैं जो, थी जबतक मर्ज़ी जो उसकी ।
बड़ा ही ख़ूबसूरत ज़िन्दगी का खेल है सारा ।।
P.K.Shayar