White "अधूरी किताबें" मैं दर दर भटकता रहा, ख्वा | हिंदी कवित

"White "अधूरी किताबें" मैं दर दर भटकता रहा, ख्वायिशो के शहर में, बेकार इतनी अपनी नसीबे है बहुत कुछ लिखता हूं मैं हर मरतबा फिर भी लिखी अधूरी किताबे है ।। सोचता हूं एक किस्सा पूरा लिख दूं मगर मुझे एकांत नहीं मिलता, कामगार हू कमा कर लाता हूं पैसा हर रोज मगर मेरे घर का माहौल शांत नहीं मिलता।। वादियों से मिला था उसने क्या कहा ये लिख हू मै फूलों से मिला था खिलखिलाकर कैसे महकते है ये लिखा हूं मैं, देख सूरज की किरणे चिड़िया चहचहा कर क्या कहती ये लिखा हूं मैं , सोचता हूं फिर से इनसे मिलकर वार्तालाप पूरी लिखूं दू मगर अफसोस है मुझे उलझ कर शहर की गलियों में , होते पूरे न मेरे गणित गुना के हिसाबे है बहुत कुछ लिखता हूं मैं हर मरतबा , फिर भी लिखी अधूरी मेरी किताबे है।। ©S.N.Mishra "isroulvi" "

White "अधूरी किताबें" मैं दर दर भटकता रहा, ख्वायिशो के शहर में, बेकार इतनी अपनी नसीबे है बहुत कुछ लिखता हूं मैं हर मरतबा फिर भी लिखी अधूरी किताबे है ।। सोचता हूं एक किस्सा पूरा लिख दूं मगर मुझे एकांत नहीं मिलता, कामगार हू कमा कर लाता हूं पैसा हर रोज मगर मेरे घर का माहौल शांत नहीं मिलता।। वादियों से मिला था उसने क्या कहा ये लिख हू मै फूलों से मिला था खिलखिलाकर कैसे महकते है ये लिखा हूं मैं, देख सूरज की किरणे चिड़िया चहचहा कर क्या कहती ये लिखा हूं मैं , सोचता हूं फिर से इनसे मिलकर वार्तालाप पूरी लिखूं दू मगर अफसोस है मुझे उलझ कर शहर की गलियों में , होते पूरे न मेरे गणित गुना के हिसाबे है बहुत कुछ लिखता हूं मैं हर मरतबा , फिर भी लिखी अधूरी मेरी किताबे है।। ©S.N.Mishra "isroulvi"

#love_shayari अधूरी किताबे

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