तर्क करती कुछ पंक्तियाँ अति को थोड़ा बना सकते है | हिंदी कविता

"तर्क करती कुछ पंक्तियाँ अति को थोड़ा बना सकते है पर, गधों को घोड़ा बना नही सकते, क्यों नही समझते? इस प्रकृति को सता सकते है पर सृष्टि को झुका नही सकते, क्यों नही समझते? ग्रंथों को जला सकते है पर धर्म को मिटा नही सकते, क्यों नही समझते? ईश्वर को अनेक कर सकते है पर मन मुताबिक मना नही सकते, क्यों नही समझते? हम चाँद पर मंडरा सकते है पर बस्तियाँ बसा नही सकते, क्यों नही समझते? कवि आनंद दाधीच, भारत ©Anand Dadhich"

 तर्क करती कुछ पंक्तियाँ

अति को थोड़ा बना सकते है पर, 
गधों को घोड़ा बना नही सकते,
क्यों नही समझते?

इस प्रकृति को सता सकते है पर
सृष्टि को झुका नही सकते,
क्यों नही समझते? 

ग्रंथों को जला सकते है पर
धर्म को मिटा नही सकते,
क्यों नही समझते? 

ईश्वर को अनेक कर सकते है पर
मन मुताबिक मना नही सकते, 
क्यों नही समझते?

हम चाँद पर मंडरा सकते है पर
बस्तियाँ बसा नही सकते, 
क्यों नही समझते? 

कवि आनंद दाधीच, भारत

©Anand Dadhich

तर्क करती कुछ पंक्तियाँ अति को थोड़ा बना सकते है पर, गधों को घोड़ा बना नही सकते, क्यों नही समझते? इस प्रकृति को सता सकते है पर सृष्टि को झुका नही सकते, क्यों नही समझते? ग्रंथों को जला सकते है पर धर्म को मिटा नही सकते, क्यों नही समझते? ईश्वर को अनेक कर सकते है पर मन मुताबिक मना नही सकते, क्यों नही समझते? हम चाँद पर मंडरा सकते है पर बस्तियाँ बसा नही सकते, क्यों नही समझते? कवि आनंद दाधीच, भारत ©Anand Dadhich

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