Anand Dadhich

Anand Dadhich Lives in Bengaluru, Karnataka, India

Author of 1. 'मंजूषा', 2. 'हरिवंश के आनंद' Creator of community web portal for Dadhich namely www.karnatakadadhich-parishad.webs.com Founder of All India Dadhich Tax Helpline (2011) Member of 'GRAOWA' apartment society Blogger views-ananddadhich.blogspot.com AnandDadhich.Blogspot.Com Poetanand-dadhich.blogspot.com

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बहुरंगा..जीवन का राग है कहीं संघर्षो का विलाप है, कहीं असीम अनंत विलास है, कहीं भूखमरी की आग है, कहीं विपुल भोज स्वाद है, बहुरंगा..जीवन का राग है। कहीं दरिंदगी के भद्दे दाग है, कहीं ज्ञानमाय संत समाज है, कहीं प्रकृति से मेल मिलाप है, कहीं शजरों की बुझी राख है, बहुरंगा..जीवन का राग है। कहीं मूकता की आवाज है, कहीं बातों से घिरा विवाद है, कहीं इरादों के अनुवाद है, कहीं बेवफ़ाई के वाद है, बहुरंगा..जीवन का राग है। कहीं तमन्नाओं का आलाप है, कहीं वेदनाओं का सैलाब है, कहीं कौशलता की चाक है, कहीं बाहुबलता की धाक है, बहुरंगा..जीवन का राग है। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich

#बहुरंगा_जीवन_का_राग #kaviananddadhich #poetananddadhich #कविता #poetsofindia  बहुरंगा..जीवन का राग है

कहीं संघर्षो का विलाप है,
कहीं असीम अनंत विलास है,
कहीं भूखमरी की आग है,
कहीं विपुल भोज स्वाद है,
बहुरंगा..जीवन का राग है।

कहीं दरिंदगी के भद्दे दाग है,
कहीं ज्ञानमाय संत समाज है,
कहीं प्रकृति से मेल मिलाप है,
कहीं शजरों की बुझी राख है,
बहुरंगा..जीवन का राग है।

कहीं मूकता की आवाज है,
कहीं बातों से घिरा विवाद है,
कहीं इरादों के अनुवाद है,
कहीं बेवफ़ाई के वाद है,
बहुरंगा..जीवन का राग है।

कहीं तमन्नाओं का आलाप है,
कहीं वेदनाओं का सैलाब है,
कहीं कौशलता की चाक है,
कहीं बाहुबलता की धाक है,
बहुरंगा..जीवन का राग है।

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳

©Anand Dadhich

अब ध्वस्त हर उन्माद चाहिए.. ये बर्बरताएं, बर्बाद चाहिए.. न्याय नीति का निनाद चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। दुशासनों की हो रही जयकार, उजालों में भी पसरा अंधकार, झूठी खबरों का होता प्रचार, अब,महाभारत की याद चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। पाप, पापी हो रहे खूंखार, दुर्जनों, खोटो से ढका संसार, दृष्टिवान अंधो का हुआ विस्तार, सुदर्शन चक्र का आघात चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। विधर्मियों से भर गया बाजार, मानकों का बचा ना आधार, त्रस्त पीड़ित जन मन करें पुकार, ये बर्बरताएं बर्बाद चाहिए- हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich

#kaviananddadhich #poetananddadhich #कविता #poetsofindia #safety  अब ध्वस्त हर उन्माद चाहिए.. 
ये बर्बरताएं, बर्बाद चाहिए.. 
न्याय नीति का निनाद चाहिए-
हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए।
     दुशासनों की हो रही जयकार,
     उजालों में भी पसरा अंधकार,
     झूठी खबरों का होता प्रचार,
     अब,महाभारत की याद चाहिए-
     हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए।
पाप, पापी हो रहे खूंखार,
दुर्जनों, खोटो से ढका संसार,
दृष्टिवान अंधो का हुआ विस्तार,
सुदर्शन चक्र का आघात चाहिए-
हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए।
     विधर्मियों से भर गया बाजार,
     मानकों का बचा ना आधार,
     त्रस्त पीड़ित जन मन करें पुकार,
      ये बर्बरताएं बर्बाद चाहिए-
     हे कृष्ण, फिर शंखनाद चाहिए।

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳

©Anand Dadhich

उन्मुक्त तिरंगे की, निराली है निशानियाँ, केसरी रंग दर्शाता, वीरों की कहानियाँ, श्वेत रंग गाता, विश्व शांति की जुबानियाँ, हरित रंग चलवाता, समृद्धि की गाड़ियाँ। तेज तिरंगे की अटूट; अटल सी यारियाँ, नील चक्र सिखाता, सातत्य की कहानियाँ, अनवरत, विस्तृत, राष्ट्रध्वज की डोरियाँ, निश्चल, निश्छल, निर्मल, तिरंगे की बोलियाँ। रखवाली रक्षण हेतु, तत्पर है जवानियाँ, लहराओं और याद करों बलिदानियाँ, दिखलादों अब शूरता भरी सलामियाँ, उन्मुक्त तिरंगे की निराली है निशानियाँ। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' ©Anand Dadhich

#poetananddadhich #kaviananddadhich #IndependenceDay #कविता #Tiranga  उन्मुक्त तिरंगे की, निराली है निशानियाँ,
केसरी रंग दर्शाता, वीरों की कहानियाँ,
श्वेत रंग गाता, विश्व शांति की जुबानियाँ,
हरित रंग चलवाता, समृद्धि की गाड़ियाँ।

तेज तिरंगे की अटूट; अटल सी यारियाँ,
नील चक्र सिखाता, सातत्य की कहानियाँ,
अनवरत, विस्तृत, राष्ट्रध्वज की डोरियाँ, 
निश्चल, निश्छल, निर्मल, तिरंगे की बोलियाँ।

रखवाली रक्षण हेतु, तत्पर है जवानियाँ, 
लहराओं और याद करों बलिदानियाँ,
दिखलादों अब शूरता भरी सलामियाँ,
उन्मुक्त तिरंगे की निराली है निशानियाँ।

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'

©Anand Dadhich

आततायी, विध्वंसक अब बिखर रहा, सुख समतामय में भारत निखर रहा, अब बेबस नहीं अपना देश प्यारा; निशिदिन सशक्त प्रगति पथ संवर रहा ! सुभग तिरंगा लहर लहर, लहर रहा। अंतस्ताप, दुःख दर्द अब गुजर रहा, शुभ मंगल सुनहला भारत उभर रहा, अब विचलित नहीं यह देश प्यारा; निशिदिन प्रचंड महारत संवर रहा ! सुभग तिरंगा लहर लहर, लहर रहा। अर्थ पिपासु प्रवंचक थर-थर डर रहा सुभग तिरंगा लहर लहर, लहर रहा, अब विवश नहीं अपना देश प्यारा; शोभित गगन संग भारत संवर रहा ! सुभग तिरंगा लहर लहर, लहर रहा। शोषक, लुटेरा, डाकू सिहर रहा, झूठों का साम्राज्य घिर, गिर रहा, अब मजबूर नहीं यह देश प्यारा; घर आँगन, गाँव शहर सब संवर रहा। सुभग तिरंगा लहर लहर, लहर रहा। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' ©Anand Dadhich

#kaviananddadhich #IndependenceDay #कविता #india2024 #Tiranga  आततायी, विध्वंसक अब बिखर रहा,
सुख समतामय में भारत निखर रहा,
अब बेबस नहीं अपना देश प्यारा;
निशिदिन सशक्त प्रगति पथ संवर रहा !
सुभग तिरंगा लहर लहर, लहर रहा।

अंतस्ताप, दुःख दर्द अब गुजर रहा,
शुभ मंगल सुनहला भारत उभर रहा,
अब विचलित नहीं यह देश प्यारा;
निशिदिन प्रचंड महारत संवर रहा !
सुभग तिरंगा लहर लहर, लहर रहा। 

अर्थ पिपासु प्रवंचक थर-थर डर रहा
सुभग तिरंगा लहर लहर, लहर रहा,
अब विवश नहीं अपना देश प्यारा;
शोभित गगन संग भारत संवर रहा !
सुभग तिरंगा लहर लहर, लहर रहा।

शोषक, लुटेरा, डाकू सिहर रहा,
झूठों का साम्राज्य घिर, गिर रहा,
अब मजबूर नहीं यह देश प्यारा;
घर आँगन, गाँव शहर सब संवर रहा।
सुभग तिरंगा लहर लहर, लहर रहा। 

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'

©Anand Dadhich

सावन है, सोमवार है, झिरमीर-झिरमिर फुहार है, बादलों में छुपा नभ है- धरा का अतुल श्रृंगार है। प्रिया है, ठंडी बयार है, बूँदों की मस्त मनुहार है, घनी पर्वतमालाएँ है- गजब अनुपम तुषार है। नदियाँ है, जलधार है, मुदित मयूर बेसुमार है, लबालब झील सरोवर है- अप्रितम सृष्टि उपहार है। खुशबू है, मधुर खुमार है, बागों में आनंद अपार है, वन उपवन मन महके है- अद्भुत सावन की फुहार है। डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳 ©Anand Dadhich

#kaviananddadhich #poetananddadhich #कविता #poetsofindia #Phuhar  सावन है, सोमवार है,
झिरमीर-झिरमिर फुहार है,
बादलों में छुपा नभ है-
धरा का अतुल श्रृंगार है। 

प्रिया है, ठंडी बयार है,
बूँदों की मस्त मनुहार है,
घनी पर्वतमालाएँ है-
गजब अनुपम तुषार है।

नदियाँ है, जलधार है,
मुदित मयूर बेसुमार है,
लबालब झील सरोवर है-
अप्रितम सृष्टि उपहार है। 

खुशबू है, मधुर खुमार है,
बागों में आनंद अपार है,
वन उपवन मन महके है-
अद्भुत सावन की फुहार है। 

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' 🇮🇳

©Anand Dadhich

बजट - दो टूक निस्तेज प्रवेश हुआ, बजट पेश हुआ, चंचल परिवेश हुआ, बेचैन देश हुआ, भ्रम शेष हुआ, कर विशेष हुआ, मुफ्त कलेश हुआ, विकास लेश हुआ, हैरान भेष हुआ, झीना ठेस हुआ, गुप्त समावेश हुआ, नया निवेश हुआ, बासी विनिवेश हुआ, एक बार फिर- बजट पेश हुआ ! डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि' ©Anand Dadhich

#kaviananddadhich #poetananddadhich #कविता #poetsofindia #budget2024  बजट - दो टूक

निस्तेज प्रवेश हुआ,
बजट पेश हुआ,
चंचल परिवेश हुआ,
बेचैन देश हुआ,
भ्रम शेष हुआ,
कर विशेष हुआ,
मुफ्त कलेश हुआ,
विकास लेश हुआ,
हैरान भेष हुआ,
झीना ठेस हुआ,
गुप्त समावेश हुआ,
नया निवेश हुआ,
बासी विनिवेश हुआ,
एक बार फिर-
बजट पेश हुआ !

डॉ आनंद दाधीच 'दधीचि'

©Anand Dadhich
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