White ठंड की ठिठुरन में सूरज ने आग ओढ़ी, दो प्रे | हिंदी कविता

"White ठंड की ठिठुरन में सूरज ने आग ओढ़ी, दो प्रेमियों ने मिल कर सारी हदें तोड़ी। क्या करें कि बाहर तो मौसम भी ऐसा है, पर तूने ज़िद न छोड़ी मैंने ज़िद न छोड़ी। नाराज़गी भी नहीं है बातें भी नहीं होती, ऐसे कैसे जमेंगी हमारी तुम्हारी जोड़ी। ना ही तुम हो गलत और न हम फ़रेबी है, खेल हमसे खेल गई है क़िस्मत निगोड़ी। आओ कि मिलें बैठें मसलों को हल करें, गिले हैं उम्र भर के ये ज़िंदगी है थोड़ी। ©एस पी "हुड्डन""

 White ठंड की  ठिठुरन में सूरज ने आग ओढ़ी,
दो  प्रेमियों  ने मिल कर सारी हदें तोड़ी।
क्या करें कि बाहर तो मौसम भी ऐसा है,
पर तूने ज़िद न छोड़ी मैंने ज़िद न छोड़ी।
नाराज़गी  भी नहीं है बातें भी नहीं होती,
ऐसे  कैसे  जमेंगी  हमारी तुम्हारी जोड़ी।
ना ही तुम हो गलत और न हम फ़रेबी है,
खेल हमसे खेल गई है क़िस्मत निगोड़ी। 
आओ कि मिलें बैठें  मसलों को हल करें,
गिले  हैं  उम्र  भर के ये ज़िंदगी है थोड़ी।

©एस पी "हुड्डन"

White ठंड की ठिठुरन में सूरज ने आग ओढ़ी, दो प्रेमियों ने मिल कर सारी हदें तोड़ी। क्या करें कि बाहर तो मौसम भी ऐसा है, पर तूने ज़िद न छोड़ी मैंने ज़िद न छोड़ी। नाराज़गी भी नहीं है बातें भी नहीं होती, ऐसे कैसे जमेंगी हमारी तुम्हारी जोड़ी। ना ही तुम हो गलत और न हम फ़रेबी है, खेल हमसे खेल गई है क़िस्मत निगोड़ी। आओ कि मिलें बैठें मसलों को हल करें, गिले हैं उम्र भर के ये ज़िंदगी है थोड़ी। ©एस पी "हुड्डन"

#क़िस्मत_निगोड़ी

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