मनुष्य घुसपैठिया और बर्बर है हर उस उजड़ते जंगल सू | हिंदी कविता

"मनुष्य घुसपैठिया और बर्बर है हर उस उजड़ते जंगल सूखती नदियों ढहते पहाड़ों के नजर में ~हिंदीवालें ©हिंदीवाले"

 मनुष्य घुसपैठिया और बर्बर है
हर उस उजड़ते जंगल 
सूखती नदियों 
ढहते पहाड़ों के नजर में
~हिंदीवालें

©हिंदीवाले

मनुष्य घुसपैठिया और बर्बर है हर उस उजड़ते जंगल सूखती नदियों ढहते पहाड़ों के नजर में ~हिंदीवालें ©हिंदीवाले

मनुष्य घुसपैठिया और बर्बर है
हर उस उजड़ते जंगल
सूखती नदियों
ढहते पहाड़ों के नजर में
~हिंदीवालें

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