कब तलक यूं घर उजाड़ें जाएंगे, कब तलक बेबस यूं मारे | हिंदी शायरी

"कब तलक यूं घर उजाड़ें जाएंगे, कब तलक बेबस यूं मारे जाएंगे। जो उठे बनकर आवाज सच की, सबसे पहले वो ही सिर उतारे जाएंगे। फिर मार कर बैठा है ठेकेदार पैसा, मुस्कुराइए भूखे गरीब फिर से मारे जाएंगे। सिर के ऊपर बह चला जो आज दरिया, तय है कि फिर हम ही मारे जाएंगे। कट गई है गुरबतो में जिंदगानी, कब तलक यूं दिन गुजारे जाएंगे। ©Sk mishra"

 कब तलक यूं घर उजाड़ें जाएंगे,
कब तलक बेबस यूं मारे जाएंगे।

जो उठे बनकर आवाज सच की,
सबसे पहले वो ही सिर उतारे जाएंगे।

फिर मार कर बैठा है ठेकेदार पैसा,
मुस्कुराइए भूखे गरीब फिर से मारे जाएंगे।

सिर के ऊपर बह चला जो आज दरिया,
तय है कि फिर हम ही मारे जाएंगे।

कट गई है गुरबतो में जिंदगानी,
कब तलक यूं दिन गुजारे जाएंगे।

©Sk mishra

कब तलक यूं घर उजाड़ें जाएंगे, कब तलक बेबस यूं मारे जाएंगे। जो उठे बनकर आवाज सच की, सबसे पहले वो ही सिर उतारे जाएंगे। फिर मार कर बैठा है ठेकेदार पैसा, मुस्कुराइए भूखे गरीब फिर से मारे जाएंगे। सिर के ऊपर बह चला जो आज दरिया, तय है कि फिर हम ही मारे जाएंगे। कट गई है गुरबतो में जिंदगानी, कब तलक यूं दिन गुजारे जाएंगे। ©Sk mishra

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