तेरे शहर में आया हूँ , मुकाम तलाश रहा हूँ ।
बे-तख्वाह हूँ आज ,मुकदर आजमा रहा हूँ ।।
पहली बार आया हूँ , मझक्का सा दिख रहा है शहर ।
गुरबत सा न बन जाऊं यंहा, हमसफ़र ढूंढ रहा हूँ ।।
काफिला-ए-बेरोजगारी बहुत होगी ,भीड़ जो है यंहा ।
मुक्ताभ सा बनकर , खुद-ब-खुद आजमा रहा हूँ ।।
पवर्तश्वर सी इमारतें है शहर मै , लिफ्ट तो होंगी ।
चढ़ना है कैसे शिखर पर, तरीका-ए-तकलीन जान रहा हूँ ।।
मिलेंगी मंजिल कहाँ ? मुझको ये पता नही ।
मुशाफिर हूँ ढूंढ़ लूंगा , कल की तलाश कर रहा हूँ ।।
@अशोक जोरासिया
©Ashok Jorasia