तुम दस शीश से सुसज्जित मैं एक शीश का प्राण प्रिये

"तुम दस शीश से सुसज्जित मैं एक शीश का प्राण प्रिये तुम दंभ दर्प से विचलित मैं शांत मन व ध्यान प्रिये तुम शिव भक्त पर हो पापी मैं सदैव सत्य का हूं साथी तुम दुष्ट,अधम, पामर, दुर्जन मैं भद्र, सभ्य, निश्छल, पावन तुम नारी के अत्याचारी मैं मानव सदा संस्कारी तुम प्रतिशोध की ज्वाला में मैं स्नेह का संज्ञान प्रिये तुम त्रेता के महा दानव मैं कलयुग का इंसान प्रिये क्यों न तुम्हें हम दहन करे क्यों हो तुम्हारा सम्मान प्रिये सर्वनाश तुम्हारा हैं संभव हैं कलयुग के हम राम प्रिये . ©संतोष"

 तुम दस शीश से सुसज्जित
मैं एक शीश का प्राण प्रिये 
तुम दंभ दर्प  से विचलित 
मैं शांत मन व ध्यान प्रिये
तुम शिव भक्त पर हो पापी
मैं सदैव सत्य का हूं साथी
तुम दुष्ट,अधम, पामर, दुर्जन 
मैं भद्र, सभ्य, निश्छल, पावन
तुम नारी के अत्याचारी 
मैं मानव सदा संस्कारी 
तुम प्रतिशोध की ज्वाला में 
मैं स्नेह का संज्ञान प्रिये
तुम त्रेता के महा दानव 
मैं कलयुग का इंसान प्रिये
क्यों न तुम्हें हम दहन करे
क्यों हो तुम्हारा सम्मान प्रिये
सर्वनाश तुम्हारा हैं संभव
हैं कलयुग के हम राम प्रिये








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©संतोष

तुम दस शीश से सुसज्जित मैं एक शीश का प्राण प्रिये तुम दंभ दर्प से विचलित मैं शांत मन व ध्यान प्रिये तुम शिव भक्त पर हो पापी मैं सदैव सत्य का हूं साथी तुम दुष्ट,अधम, पामर, दुर्जन मैं भद्र, सभ्य, निश्छल, पावन तुम नारी के अत्याचारी मैं मानव सदा संस्कारी तुम प्रतिशोध की ज्वाला में मैं स्नेह का संज्ञान प्रिये तुम त्रेता के महा दानव मैं कलयुग का इंसान प्रिये क्यों न तुम्हें हम दहन करे क्यों हो तुम्हारा सम्मान प्रिये सर्वनाश तुम्हारा हैं संभव हैं कलयुग के हम राम प्रिये . ©संतोष

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