ममता माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं
मुझे रचा है जिसने, उस रचनाकार पर क्या लिखूं
मैं स्वयं तस्वीर हूँ तेरी, भला मैं कलाकार पर क्या लिखूं
माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं
बेलफ्ज़ सा हूँ, दिल में है जो मेरे उस जज़्बात पर क्या लिखूं
बिन बोले मेरे जो परख ले, तेरी वो हर बात पर क्या लिखूं
पालकी में सुनाई तेरी वो लोरी वो गीत पर क्या लिखूं
वो कुछ किस्से, कहानियों में दी वो सीख पर क्या लिखूं
मैं तो महज़ साँस हूँ माँ, साँस होकर मैं हवा पर क्या लिखूं
तुम ही मेरी राहत हो, भला किसी और दवा पर क्या लिखूं
माँगी जो मेरे लिए, उन बेहिसाब मन्नतों पर क्या लिखूं
आँचल से प्यारी तेरे है ही नहीं, तो भला उन जन्नतों पर क्या लिखूं
माँ तेरी दुआओं, तेरे व्रत, तेरे अरदास पर क्या लिखूं
मैं तो इक बूँद हूँ, भला ममता की बरसात पर क्या लिखूं
मेरे ख़्वाबों का बोझ लिए जागी तेरी फ़िक्रमंद पलक पर क्या लिखूं
माँ, क्या लिखूं मैं जमीं पर, अब फ़लक़ पर क्या लिखूं
तकलीफ़ों से बचाती हरदम मुझे, ऐसी ममतामयी ढाल पर क्या लिखूं
त्याग, बलिदान, प्रेम की ऐसी मिसाल पर क्या लिखूं
मेरे ख़ातिर तेरी आँखों में सजे उन सपनों पर क्या लिखूं
तुझ से प्यारा न कोई मुझे माँ, तो उन अपनों पर क्या लिखूं
तू कृष्ण सी सारथी मेरी, तो भला मैं किसी पार्थ पर क्या लिखूं
इक 'माँ' ही सत्य है, तो किसी और यथार्थ पर क्या लिखूं
जब किरदार ही है तेरा बेलौस, तो तेरे किसी स्वार्थ पर क्या लिखूं
माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं
माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं
माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं
मुझे रचा है जिसने, उस रचनाकार पर क्या लिखूं
मैं स्वयं तस्वीर हूँ तेरी, भला मैं कलाकार पर क्या लिखूं
माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं
बेलफ्ज़ सा हूँ, दिल में है जो मेरे उस जज़्बात पर क्या लिखूं
बिन बोले मेरे जो परख ले, तेरी वो हर बात पर क्या लिखूं