Beyond The Poetry

Beyond The Poetry Lives in Indore, Madhya Pradesh, India

आईने सा पाक और तरल हूँ...अर्ज़मन्द नहीं साहब... शख़्सियत-ए-सरल हूँ...शख़्सियत-ए-सरल हूँ...

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#beyond_the_poetry #कविता #TwolinesPoetry #saraltwoliners

"शत्रु" हारेगा, "हम" जीतेंगे..."शत्रु" हारेगा, "हम" जीतेंगे हैं दिन ये कुछ इम्तिहान के, तू रख संयम, ये बीतेंगे "हम" जीतेंगे, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे छटेगा ये घनघोर अँधेरा, होगा फिर एक स्वस्थ सवेरा, जन-शून्य हुई माटी में, लौटेगा फिर ख़ुशियों का डेरा, संकट की अग्नि में तप कर, कुंदन बन फिर निखरेंगे, "हम" जीतेंगे, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे रौनक होगी फिर बाजारों में, सजेगी बस्ती तीज त्योहारों में, मस्ती में टोलियाँ घूमेंगी, चौपालें फिर हास्य में झूमेगी, सुनके शोर हमारे मंसूबों का, हौसले सन्नाटों के टूटेंगे "हम" जीतेंगे, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे होगी भक्ति पुनः शिवालों में, स्वाद होगा रूखे निवालों में मुरादें मज़ारों को चूमेंगी, गुरूवाणी फिर कानों में गूंजेंगी विपदा की निर्मोही आँधी में, हम मिलकर लड़ना सीखेंगे "हम" जीतेंगे, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे फैलाकर बाहें मंजिलें आएंगी, चहुं ओर बहारें छाएंगी बढ़ेंगे हम फिर से लक्ष्यों की ओर, थामेंगे फिर अपने सपनों की डोर थमें मुल्क़ के इन पहियों को, हम बन सारथी खीचेंगे "हम" जीतेंगे, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे हम उठे हैं गिरकर हर दफ़ा, बेशक़ ये जंग भी जीतेंगे, विरुद्ध प्रकृति के प्रकोप के, हम गीत विजय का लिखेंगे "शत्रु" हारेगा, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे

#हम_जीतेंगे #21dayslockdown #coronavirus  "शत्रु" हारेगा, "हम" जीतेंगे..."शत्रु" हारेगा, "हम" जीतेंगे
हैं दिन ये कुछ इम्तिहान के, तू रख संयम, ये बीतेंगे
"हम" जीतेंगे, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे

छटेगा ये घनघोर अँधेरा, होगा फिर एक स्वस्थ सवेरा,
जन-शून्य हुई माटी में, लौटेगा फिर ख़ुशियों का डेरा,
संकट की अग्नि में तप कर, कुंदन बन फिर निखरेंगे,
"हम" जीतेंगे, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे

रौनक होगी फिर बाजारों में, सजेगी बस्ती तीज त्योहारों में,
मस्ती में टोलियाँ घूमेंगी, चौपालें फिर हास्य में झूमेगी,
सुनके शोर हमारे मंसूबों का, हौसले सन्नाटों के टूटेंगे
"हम" जीतेंगे, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे

होगी भक्ति पुनः शिवालों में, स्वाद होगा रूखे निवालों में
मुरादें मज़ारों को चूमेंगी, गुरूवाणी फिर कानों में गूंजेंगी
विपदा की निर्मोही आँधी में, हम मिलकर लड़ना सीखेंगे
"हम" जीतेंगे, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे

फैलाकर बाहें मंजिलें आएंगी, चहुं ओर बहारें छाएंगी
बढ़ेंगे हम फिर से लक्ष्यों की ओर, थामेंगे फिर अपने सपनों की डोर
थमें मुल्क़ के इन पहियों को, हम बन सारथी खीचेंगे
"हम" जीतेंगे, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे

हम उठे हैं गिरकर हर दफ़ा, बेशक़ ये जंग भी जीतेंगे, 
विरुद्ध प्रकृति के प्रकोप के, हम गीत विजय का लिखेंगे
"शत्रु" हारेगा, "हम" जीतेंगे, "वो" हारेगा, "हम" जीतेंगे

ये समय है आत्मबोध का... कुछ आत्मचिंतन, थोड़े आत्मशोध का ये समय है आत्मबोध का... दोहन कर प्रकृति का, निःस्वार्थ उसे क्या दिया ? हित किया बस स्वयं का, हे मानव ! ये तूने क्या किया ? तू कर स्मरण, थोड़ा विचार कर, ये समय है अनुबोध का कुछ आत्मचिंतन, थोड़े आत्मशोध का मत समझ के तू है ख़ुदा, बस इक यही तेरी भूल है तू कण मात्र है सृष्टि का, शामिल इसी में तेरा मूल है अब चक्षु खोल, निंद्रा से उठ, ये समय है प्रबोध का कुछ आत्मचिंतन, थोड़े आत्मशोध का मानव जीवन के अस्तित्व की, ये जो अंधी दौड़ है, है व्यर्थ का संघर्ष ये, अपनों से भला कैसी होड़ है, अपने चित्त को अब साध तू , ये समय है अंतर्बोध का कुछ आत्मचिंतन, थोड़े आत्मशोध का मिल ख़ुद से तू और बात कर,थोड़ा ख़ुद को भी तू जान ले, करके थोड़ा आत्ममंथन, अपनी त्रुटियों को मान ले, क्या किया सही, क्या था ग़लत, ये समय है स्वयं के बोध का कुछ आत्मचिंतन, थोड़े आत्मशोध का ये समय है आत्मबोध का...ये समय है आत्मबोध का... -© अमित पाराशर 'सरल'

#आत्मबोध  ये समय है आत्मबोध का...
कुछ आत्मचिंतन, थोड़े आत्मशोध का
ये समय है आत्मबोध का...

दोहन कर प्रकृति का, निःस्वार्थ उसे क्या दिया ?
हित किया बस स्वयं का, हे मानव ! ये तूने क्या किया ?
तू कर स्मरण, थोड़ा विचार कर, ये समय है अनुबोध का
कुछ आत्मचिंतन, थोड़े आत्मशोध का

मत समझ के तू है ख़ुदा, बस इक यही तेरी भूल है
तू कण मात्र है सृष्टि का, शामिल इसी में तेरा मूल है
अब चक्षु खोल, निंद्रा से उठ, ये समय है प्रबोध का
कुछ आत्मचिंतन, थोड़े आत्मशोध का

मानव जीवन के अस्तित्व की, ये जो अंधी दौड़ है,
है व्यर्थ का संघर्ष ये, अपनों से भला कैसी होड़ है,
अपने चित्त को अब साध तू , ये समय है अंतर्बोध का
कुछ आत्मचिंतन, थोड़े आत्मशोध का

मिल ख़ुद से तू और बात कर,थोड़ा ख़ुद को भी तू जान ले,
करके थोड़ा आत्ममंथन, अपनी त्रुटियों को मान ले,
क्या किया सही, क्या था ग़लत, ये समय है स्वयं के बोध का
कुछ आत्मचिंतन, थोड़े आत्मशोध का

ये समय है आत्मबोध का...ये समय है आत्मबोध का...

-© अमित पाराशर 'सरल'

भला ये कैसा चित्र है, ये भयावह, ये विचित्र है सियासतों के खेल में, मज़हबी हो रहा चरित्र है क्यों मन में ये उबाल है, जो कर रहा सवाल है अशफ़ाक- बिस्मिल के मुल्क़ का, क्या हो रहा ये हाल है चलाई किसने गोलियाँ, क्यों आग ये लगाई है ये बस्ती जिसकी जल रही, वो हमारा ही तो भाई है इक बागबां के फ़ूल हम, क्यों लड़ रहे बेफ़िजुल हैं, तू रुक जरा विचार कर, इंसानियत के भी कुछ उसूल हैं हम हैं अलग, पर एक हैं, फिर कैसी ये तकरार है तू मिल गले और प्यार कर, वतन की ये पुकार है कोई है हरा, कोई केसरी, यही बात तो विचित्र है इक श्वेत हमें है जोड़ता, असल में यही मुल्क़ का चरित्र है यही मुल्क़ का चरित्र है...यही मुल्क़ का चरित्र है...

#DelhiRiots #Quote  भला ये कैसा चित्र है, ये भयावह, ये विचित्र है
सियासतों के खेल में, मज़हबी हो रहा चरित्र है

क्यों मन में ये उबाल है, जो कर रहा सवाल है
अशफ़ाक- बिस्मिल के मुल्क़ का, क्या हो रहा ये हाल है

चलाई किसने गोलियाँ, क्यों आग ये लगाई है
ये बस्ती जिसकी जल रही, वो हमारा ही तो भाई है

इक बागबां के फ़ूल हम, क्यों लड़ रहे बेफ़िजुल हैं, 
तू रुक जरा विचार कर, इंसानियत के भी कुछ उसूल हैं

हम हैं अलग, पर एक हैं, फिर कैसी ये तकरार है
तू मिल गले और प्यार कर, वतन की ये पुकार है

कोई है हरा, कोई केसरी, यही बात तो विचित्र है
इक श्वेत हमें है जोड़ता, असल में यही मुल्क़ का चरित्र है
यही मुल्क़ का चरित्र है...यही मुल्क़ का चरित्र है...

क्या कहेंगे लोग, ताल्लुकों में हमारे, शायद बाकी कुछ मुरव्वत आज भी है हमदर्दी उन्हें हमसे, हमें उनसे मुहब्बत आज भी है मुन्तज़िर इस दिल को, इन्तज़ार-ए-क़ुरबत आज भी है महफ़िलों में अक़्सर हमारी, होता उनका ज़िक्र आज भी है पता नहीं क्यों, कम्बख़्त हमें उनकी फ़िक्र आज भी है वस्ल की मैं क्या बात कहूँ, हमें तो ग़म-ए-हिज़्र आज भी है करता है मेरा पीछा, जैसे उनका कोई अक्स आज भी है तलाश में कारवाँ के भटकता, ये नादां शख्श आज भी है तन्हाइयों में अक़्सर गिरते, मेरे अब्सार से अश्क़ आज भी है बेदर्द हैं वो अब भी, लगता है उन्हें ख़ुद पर गुमाँ आज भी है ज़रा माफ़ करना, थोड़ी तल्ख़ ये हमारी जुबाँ आज भी है ज़रा गौर से देखो, उजड़ी बस्ती के कुछ बाक़ी निशां आज भी है इश्क़ के सूखते दरख़्त पर इक शाख़-ए-सब्ज़ आज भी है महज़ उनके ख़्यालों के सहारे दौड़ती, मेरी ये नब्ज़ आज भी है क़ाश वो मुक़म्मल करे, इंतज़ार में इक अधूरी नज़्म आज भी है वो बेख़बर तो नहीं लगते, शायद फ़ितरत से मग़रूर आज भी है और भला हम ठहरे, अपनी आदतों से मजबूर आज भी हैं इश्क़ की कहानियों में, हमारा ये क़िरदार मशहूर आज भी है जो किये थे फ़ैसले, लेकर उन्हें कुछ मलाल आज भी है क्यों हुए ये फासले, इन्हें लेकर कुछ सवाल आज भी है बावजूद आलम ये है, बदस्तूर आते उनके ख़्याल आज भी है यकीं मानों, दुआओं में मेरी उनका नाम शामिल आज भी है एक वो हैं, जो समझने में इस बात को नाक़ाबिल आज भी है वफ़ा की लहरों के भरोसे, प्यासा ये साहिल आज भी है बेशक़ वो ख़्वाब रहा अधूरा, लेक़िन ये इश्क़ मेरा मुकम्मल आज भी है उनकी यादों को समेटे, मेरी ओर चलती कुछ हवाऐं मुसलसल आज भी है लेकर उन्हें थी जो लिखी, याद आती हमें वो ग़ज़ल आज भी है ये दिल है बनाता उन हसीं लम्हातों की तस्वीर आज भी है दरअसल, ये है उन पर फ़िदा एक मुसव्विर आज भी है भले मैं अब उनका रांझा न सही, वो मेरी हीर आज भी है वो मेरी हीर आज भी है...वो मेरी हीर आज भी है © अमित पाराशर 'सरल'

#आज_भी_है  क्या कहेंगे लोग, ताल्लुकों में हमारे, शायद बाकी कुछ मुरव्वत आज भी है
हमदर्दी उन्हें हमसे, हमें उनसे मुहब्बत आज भी है
मुन्तज़िर इस दिल को, इन्तज़ार-ए-क़ुरबत आज भी है

महफ़िलों में अक़्सर हमारी, होता उनका ज़िक्र आज भी है
पता नहीं क्यों, कम्बख़्त हमें उनकी फ़िक्र आज भी है
वस्ल की मैं क्या बात कहूँ, हमें तो ग़म-ए-हिज़्र आज भी है

करता है मेरा पीछा, जैसे उनका कोई अक्स आज भी है
तलाश में कारवाँ के भटकता, ये नादां शख्श आज भी है
तन्हाइयों में अक़्सर गिरते, मेरे अब्सार से अश्क़ आज भी है

बेदर्द हैं वो अब भी, लगता है उन्हें ख़ुद पर गुमाँ आज भी है
ज़रा माफ़ करना, थोड़ी तल्ख़ ये हमारी जुबाँ आज भी है
ज़रा गौर से देखो, उजड़ी बस्ती के कुछ बाक़ी निशां आज भी है

इश्क़ के सूखते दरख़्त पर इक शाख़-ए-सब्ज़ आज भी है
महज़ उनके ख़्यालों के सहारे दौड़ती, मेरी ये नब्ज़ आज भी है
क़ाश वो मुक़म्मल करे, इंतज़ार में इक अधूरी नज़्म आज भी है

वो बेख़बर तो नहीं लगते, शायद फ़ितरत से मग़रूर आज भी है
और भला हम ठहरे, अपनी आदतों से मजबूर आज भी हैं
इश्क़ की कहानियों में, हमारा ये क़िरदार मशहूर आज भी है

जो किये थे फ़ैसले, लेकर उन्हें कुछ मलाल आज भी है
क्यों हुए ये फासले, इन्हें लेकर कुछ सवाल आज भी है
बावजूद आलम ये है, बदस्तूर आते उनके ख़्याल आज भी है

यकीं मानों, दुआओं में मेरी उनका नाम शामिल आज भी है
एक वो हैं, जो समझने में इस बात को नाक़ाबिल आज भी है
वफ़ा की लहरों के भरोसे, प्यासा ये साहिल आज भी है

बेशक़ वो ख़्वाब रहा अधूरा, लेक़िन ये इश्क़ मेरा मुकम्मल आज भी है
उनकी यादों को समेटे, मेरी ओर चलती कुछ हवाऐं मुसलसल आज भी है
लेकर उन्हें थी जो लिखी, याद आती हमें वो ग़ज़ल आज भी है

ये दिल है बनाता उन हसीं लम्हातों की तस्वीर आज भी है
दरअसल, ये है उन पर फ़िदा एक मुसव्विर आज भी है
भले मैं अब उनका रांझा न सही, वो मेरी हीर आज भी है
वो मेरी हीर आज भी है...वो मेरी हीर आज भी है

© अमित पाराशर 'सरल'

#आज_भी_है ताल्लुकों में हमारे, शायद बाकी कुछ मुरव्वत आज भी है हमदर्दी उन्हें हमसे, हमें उनसे मुहब्बत आज भी है मुन्तज़िर इस दिल को, इन्तज़ार-ए-क़ुरबत आज भी है महफ़िलों में अक़्सर हमारी, होता उनका ज़िक्र आज भी है पता नहीं क्यों, कम्बख़्त हमें उनकी फ़िक्र आज भी है

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ममता माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं मुझे रचा है जिसने, उस रचनाकार पर क्या लिखूं मैं स्वयं तस्वीर हूँ तेरी, भला मैं कलाकार पर क्या लिखूं माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं बेलफ्ज़ सा हूँ, दिल में है जो मेरे उस जज़्बात पर क्या लिखूं बिन बोले मेरे जो परख ले, तेरी वो हर बात पर क्या लिखूं पालकी में सुनाई तेरी वो लोरी वो गीत पर क्या लिखूं वो कुछ किस्से, कहानियों में दी वो सीख पर क्या लिखूं मैं तो महज़ साँस हूँ माँ, साँस होकर मैं हवा पर क्या लिखूं तुम ही मेरी राहत हो, भला किसी और दवा पर क्या लिखूं माँगी जो मेरे लिए, उन बेहिसाब मन्नतों पर क्या लिखूं आँचल से प्यारी तेरे है ही नहीं, तो भला उन जन्नतों पर क्या लिखूं माँ तेरी दुआओं, तेरे व्रत, तेरे अरदास पर क्या लिखूं मैं तो इक बूँद हूँ, भला ममता की बरसात पर क्या लिखूं मेरे ख़्वाबों का बोझ लिए जागी तेरी फ़िक्रमंद पलक पर क्या लिखूं माँ, क्या लिखूं मैं जमीं पर, अब फ़लक़ पर क्या लिखूं तकलीफ़ों से बचाती हरदम मुझे, ऐसी ममतामयी ढाल पर क्या लिखूं त्याग, बलिदान, प्रेम की ऐसी मिसाल पर क्या लिखूं मेरे ख़ातिर तेरी आँखों में सजे उन सपनों पर क्या लिखूं तुझ से प्यारा न कोई मुझे माँ, तो उन अपनों पर क्या लिखूं तू कृष्ण सी सारथी मेरी, तो भला मैं किसी पार्थ पर क्या लिखूं इक 'माँ' ही सत्य है, तो किसी और यथार्थ पर क्या लिखूं जब किरदार ही है तेरा बेलौस, तो तेरे किसी स्वार्थ पर क्या लिखूं माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं

#MothersDay #loveumom  ममता माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं
मुझे रचा है जिसने, उस रचनाकार पर क्या लिखूं
मैं स्वयं तस्वीर हूँ तेरी, भला मैं कलाकार पर क्या लिखूं
माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं

बेलफ्ज़ सा हूँ, दिल में है जो मेरे उस जज़्बात पर क्या लिखूं
बिन बोले मेरे जो परख ले, तेरी वो हर बात पर क्या लिखूं

पालकी में सुनाई तेरी वो लोरी वो गीत पर क्या लिखूं
वो कुछ किस्से, कहानियों में दी वो सीख पर क्या लिखूं

मैं तो महज़ साँस हूँ माँ, साँस होकर मैं हवा पर क्या लिखूं
तुम ही मेरी राहत हो, भला किसी और दवा पर क्या लिखूं

माँगी जो मेरे लिए, उन बेहिसाब मन्नतों पर क्या लिखूं
आँचल से प्यारी तेरे है ही नहीं, तो भला उन जन्नतों पर क्या लिखूं

माँ तेरी दुआओं, तेरे व्रत, तेरे अरदास पर क्या लिखूं
मैं तो इक बूँद हूँ, भला ममता की बरसात पर क्या लिखूं

मेरे ख़्वाबों का बोझ लिए जागी तेरी फ़िक्रमंद पलक पर क्या लिखूं
माँ, क्या लिखूं मैं जमीं पर, अब फ़लक़ पर क्या लिखूं

तकलीफ़ों से बचाती हरदम मुझे, ऐसी ममतामयी ढाल पर क्या लिखूं
त्याग, बलिदान, प्रेम की ऐसी मिसाल पर क्या लिखूं

मेरे ख़ातिर तेरी आँखों में सजे उन सपनों पर क्या लिखूं
तुझ से प्यारा न कोई मुझे माँ, तो उन अपनों पर क्या लिखूं

तू कृष्ण सी सारथी मेरी, तो भला मैं किसी पार्थ पर क्या लिखूं
इक 'माँ' ही सत्य है, तो किसी और यथार्थ पर क्या लिखूं
जब किरदार ही है तेरा बेलौस, तो तेरे किसी स्वार्थ पर क्या लिखूं

माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं
माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं

माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं मुझे रचा है जिसने, उस रचनाकार पर क्या लिखूं मैं स्वयं तस्वीर हूँ तेरी, भला मैं कलाकार पर क्या लिखूं माँ, भला मैं तुम पर क्या लिखूं बेलफ्ज़ सा हूँ, दिल में है जो मेरे उस जज़्बात पर क्या लिखूं बिन बोले मेरे जो परख ले, तेरी वो हर बात पर क्या लिखूं

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