भला ये कैसा चित्र है, ये भयावह, ये विचित्र है
सियासतों के खेल में, मज़हबी हो रहा चरित्र है
क्यों मन में ये उबाल है, जो कर रहा सवाल है
अशफ़ाक- बिस्मिल के मुल्क़ का, क्या हो रहा ये हाल है
चलाई किसने गोलियाँ, क्यों आग ये लगाई है
ये बस्ती जिसकी जल रही, वो हमारा ही तो भाई है
इक बागबां के फ़ूल हम, क्यों लड़ रहे बेफ़िजुल हैं,
तू रुक जरा विचार कर, इंसानियत के भी कुछ उसूल हैं
हम हैं अलग, पर एक हैं, फिर कैसी ये तकरार है
तू मिल गले और प्यार कर, वतन की ये पुकार है
कोई है हरा, कोई केसरी, यही बात तो विचित्र है
इक श्वेत हमें है जोड़ता, असल में यही मुल्क़ का चरित्र है
यही मुल्क़ का चरित्र है...यही मुल्क़ का चरित्र है...
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