अच्छे दिन
मुद्दतों बाद तो इक आस बनीं थीं,
इसी आस में इक सरकार बनीं थी।
तुमने वादे भी किए थे अच्छे दिनों के,
इसलिए तुम्हारे हर निर्णय में ,
हमारी हां में हां भी मिलीं थीं।
कहां है वो काला धन जो तुम,
अपनी जेबों में लिए फिरते हो?
कहां है वो रोजगार जो तुमने,
बेरोजगारों के लिए बुनें थे?
अब तो हद हो गई महंगाई की भी,
रुपया आसमान छू रहा और,
भूखे पाताल में समा रहे।
क्यों है अभी तक धारा ३७०,
जो वादे भारतीय एकता के लिए किए थे?
क्यों है अभी तक मजहबी रंजिश?
जो तुम्हारे कर्मों का ही फल है।
गौ रक्षा से निकल कर तो देखो,
बहू बेटियों की रक्षा भी जरूरी है।
अच्छे दिनों की आस में कई साल काट दिए,
तुम बोफोर्स-राफेल पे ही अटके रहे,
यहां किसानों को कर्ज ने मार दिए।।
अजेय
acche din
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