White दिवाली के दीप जले है हिन्दुस्तान की माटी मे
लेकिन कुछ चराग बुझ गये है क़ाश्मीर की घाटी मे
आओ अंध्यारो के दीप जला ले उज्यारो के आँगन मे
शायद तब कुछ फूल खिलेंगे सीमाओ के बांगन मे
धनतेरस पर सोना चांदी तांबा पीतल सब निकलेगा इस देश की माटी से
निकलेगा लेकिन तब निकलेगा जब निकलेगा मन की काठी से
धन की देवी रूठी वर्षो आओ मना घर ले जाएंगे
तुम कुछ निर्धन को धन दे देना वो भी धन घर ले जाएंगे
कल दीप जला लेना खातिर सेमाओ के बलिदानो की
शायद तब दीप शखाए जल उठेंगी अधियारे चौबारो की
जुठो के मुँह काले है होंठो पर भी ताले है इनकी जो ये हार हुई है
सच की जय जय कार हुई है रावण की जो हार हुई है
©नासिर काज़मी
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