White दिवाली के दीप जले है हिन्दुस्तान की माटी मे | हिंदी कविता

"White दिवाली के दीप जले है हिन्दुस्तान की माटी मे लेकिन कुछ चराग बुझ गये है क़ाश्मीर की घाटी मे आओ अंध्यारो के दीप जला ले उज्यारो के आँगन मे शायद तब कुछ फूल खिलेंगे सीमाओ के बांगन मे धनतेरस पर सोना चांदी तांबा पीतल सब निकलेगा इस देश की माटी से निकलेगा लेकिन तब निकलेगा जब निकलेगा मन की काठी से धन की देवी रूठी वर्षो आओ मना घर ले जाएंगे तुम कुछ निर्धन को धन दे देना वो भी धन घर ले जाएंगे कल दीप जला लेना खातिर सेमाओ के बलिदानो की शायद तब दीप शखाए जल उठेंगी अधियारे चौबारो की जुठो के मुँह काले है होंठो पर भी ताले है इनकी जो ये हार हुई है सच की जय जय कार हुई है रावण की जो हार हुई है ©नासिर काज़मी"

 White दिवाली के दीप जले है हिन्दुस्तान की माटी मे 
लेकिन कुछ चराग बुझ गये है क़ाश्मीर की घाटी मे 

आओ अंध्यारो के दीप जला ले उज्यारो के आँगन मे 
शायद तब कुछ फूल खिलेंगे सीमाओ के बांगन मे 

धनतेरस पर सोना चांदी तांबा पीतल सब निकलेगा इस देश की माटी से 
निकलेगा लेकिन तब निकलेगा जब निकलेगा मन की काठी से 

धन की देवी रूठी वर्षो आओ मना घर ले जाएंगे 
तुम कुछ निर्धन को धन दे देना वो भी धन घर ले जाएंगे 

कल दीप जला लेना खातिर सेमाओ के बलिदानो की 
शायद तब दीप शखाए जल उठेंगी अधियारे चौबारो की 

जुठो के मुँह काले है होंठो पर भी ताले है इनकी जो ये हार हुई है 
सच की जय जय कार हुई है रावण की जो हार हुई है

©नासिर काज़मी

White दिवाली के दीप जले है हिन्दुस्तान की माटी मे लेकिन कुछ चराग बुझ गये है क़ाश्मीर की घाटी मे आओ अंध्यारो के दीप जला ले उज्यारो के आँगन मे शायद तब कुछ फूल खिलेंगे सीमाओ के बांगन मे धनतेरस पर सोना चांदी तांबा पीतल सब निकलेगा इस देश की माटी से निकलेगा लेकिन तब निकलेगा जब निकलेगा मन की काठी से धन की देवी रूठी वर्षो आओ मना घर ले जाएंगे तुम कुछ निर्धन को धन दे देना वो भी धन घर ले जाएंगे कल दीप जला लेना खातिर सेमाओ के बलिदानो की शायद तब दीप शखाए जल उठेंगी अधियारे चौबारो की जुठो के मुँह काले है होंठो पर भी ताले है इनकी जो ये हार हुई है सच की जय जय कार हुई है रावण की जो हार हुई है ©नासिर काज़मी

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