तुम , हा तुम्हीं तुम कितने सरल हो , कितने सुंदर

"तुम , हा तुम्हीं तुम कितने सरल हो , कितने सुंदर रूह तुम्हारी पाक हैं आंखों में बुनते कितने ख़्वाब हैं सूरजमुखी की धूप हो तुम तुमसे खिलते सारे बाग हैं तुम जो अपनी आंखें मीच, सांस भर, भुजाएं खोल ,इन हवाओं संग लिपट जाते हो मलिन थे तुम,फिर रूह अपनी साफ पाते हो तुम धीरे धीरे जानने लगते हो अदृश्य हवा का मोल फिर घोलते हो किरदार में अपने गुलाब की सुगंध सब ओर तुम बच्चे हो आज भी खामाखा तुजरबो का मुखौटा लगाए बैठे हो खुद को अच्छा दिखाने में मशरूफ हुए इतने की खुदको भुलाए बैठे हो जानती हूं ज़िन्दगी लंबी शाम हैं जैसे कोई पर क्यों तुम सर झुकाए बैठे हो? होगा नया दिन ,नई उम्मीद से भरा क्यों दिल पे बोझ ढाए बैठे हो? तुम छोड़ आए थे खुद को पीछे दूर कहीं पाया जब ,जब छोड़ी आस जग से सभी बंधी प्रेम की डोर खुदसे आरंभ हुई एक रीत नई आरंभ हुई एक रीत नई ©Drishti Nagpal"

 तुम ,  हा तुम्हीं

तुम कितने सरल हो , कितने सुंदर
रूह तुम्हारी पाक हैं
आंखों में बुनते कितने ख़्वाब हैं
सूरजमुखी की धूप हो तुम
तुमसे खिलते सारे बाग हैं

तुम जो अपनी आंखें मीच, सांस भर,  भुजाएं खोल ,इन हवाओं संग लिपट जाते हो
मलिन थे  तुम,फिर रूह अपनी साफ पाते हो

तुम धीरे धीरे जानने लगते हो अदृश्य हवा का मोल
फिर घोलते हो किरदार में अपने गुलाब की सुगंध सब ओर

तुम बच्चे हो आज भी 
खामाखा तुजरबो का मुखौटा लगाए बैठे हो
खुद को अच्छा दिखाने में मशरूफ हुए इतने की 
खुदको भुलाए बैठे हो

जानती हूं ज़िन्दगी लंबी शाम हैं जैसे कोई 
पर क्यों तुम सर झुकाए बैठे हो?
होगा नया दिन ,नई उम्मीद से भरा
क्यों दिल पे बोझ ढाए बैठे हो?

तुम छोड़ आए थे खुद को पीछे दूर कहीं
पाया जब ,जब छोड़ी आस जग से सभी
बंधी प्रेम की डोर खुदसे
आरंभ हुई एक रीत नई
आरंभ हुई एक रीत नई

©Drishti Nagpal

तुम , हा तुम्हीं तुम कितने सरल हो , कितने सुंदर रूह तुम्हारी पाक हैं आंखों में बुनते कितने ख़्वाब हैं सूरजमुखी की धूप हो तुम तुमसे खिलते सारे बाग हैं तुम जो अपनी आंखें मीच, सांस भर, भुजाएं खोल ,इन हवाओं संग लिपट जाते हो मलिन थे तुम,फिर रूह अपनी साफ पाते हो तुम धीरे धीरे जानने लगते हो अदृश्य हवा का मोल फिर घोलते हो किरदार में अपने गुलाब की सुगंध सब ओर तुम बच्चे हो आज भी खामाखा तुजरबो का मुखौटा लगाए बैठे हो खुद को अच्छा दिखाने में मशरूफ हुए इतने की खुदको भुलाए बैठे हो जानती हूं ज़िन्दगी लंबी शाम हैं जैसे कोई पर क्यों तुम सर झुकाए बैठे हो? होगा नया दिन ,नई उम्मीद से भरा क्यों दिल पे बोझ ढाए बैठे हो? तुम छोड़ आए थे खुद को पीछे दूर कहीं पाया जब ,जब छोड़ी आस जग से सभी बंधी प्रेम की डोर खुदसे आरंभ हुई एक रीत नई आरंभ हुई एक रीत नई ©Drishti Nagpal

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