Drishti Nagpal

Drishti Nagpal Lives in Jind, Haryana, India

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रात के लगभग ढाई बज रहे थे | शून्य बटे सन्नाटे में घड़ी की टिक टिक की ध्वनि गूंज रही थी और एक ये नींद जो आने का नाम ही नहीं ले रही थी | बात पिछले महीने वसंत के मौसम की है | मैं और मां राम शरणम् आश्रम में ठहरे हुए थे | बचपन में यहां कभी कभी आना हो जाया करता था मगर इस दफा हफ्ते के लिए ठहरना मेरे लिए नवीन था | यहां की शांति और वातावरण मन मोह लेता है, मानो स्वर्ग सा महसूस करा देता है | नींद ना आने के कारण मैं स्थानीय कक्ष के बरामदे मैं फोन लिए टहलने लगी तो तभी अचानक फोन की टॉर्च की रोशनी में देखा की एक दरवाजा आधा खुला था, जबकि अन्य सारे बंद थे | अंदर जाने पर ज्ञात हुआ कि एक उम्रदराज औरत जाप कर रही थी | कमरे में अन्य और कोई ना था | मैंने आराम से दरवाजा बंद करना चाहा कि एक लड़खड़ाती आवाज सुनाई पड़ी "कौन , कौन है?" | मैंने उन्हें दादी जी कहकर संबोधित किया और कहा नींद नहीं आ रही थी, सो थोड़ा टहलने लगी | माफी चाहती हूं आपका ध्यान भंग करने के लिए |उन्होंने बड़ी ही विनम्र ध्वनि में जवाब दिया, "कोई बात नहीं बेटा ,यह तो दिन रात का काम है ,आओ बैठो तो जरा" | टॉर्च की रोशनी में मेरे चेहरे को देख कर प्यारे स्वर में वह बोली ,तुम बिल्कुल मेरी पोती जैसी दिखती हो | यहां से शुरू होकर एक के बाद एक नए किस्से , मानो उनकी एक लंबी कतार जो वह अपने जहन में जाने कितने वक्त से संजोए बैठी थी | किस्से थे ,आज के ,कल के, बीते ज़माने के | इसी बीच मैंने उनसे एक प्रश्न किया ,दादी जी मृत्यु कितनी डरावनी होती है ना ? कैसे हर कोई खुद को मौत से निगल ना लेने की जद्दोजहद में लगा है | कोई किसी भी उम्र के पड़ाव में क्यों ना पहुंच जाए ,मगर कहता है , अभी मेरी उम्र ही क्या है भला? , मैंने हाथों से इशारा करते हुए कहा | दादी जी हंस पड़ी और बोली-मौत की कला जीने की कला का ही विस्तार है | जीवन से विदाई भी खुशी के चारों ओर ध्वनि और उत्साह के बीच होनी चाहिए | एक साहसी यात्री के तौर पर अंतिम सीमा का अनुभव करना चाहिए | उस पार कुछ नया होगा इसका पता लगाने में बेसब्र होना चाहिए ना की मृत्यु से डरा जाए | मृत्यु को बताएं ,सौम्या अंदाज में, थोड़ा इंतजार कर ,मैं अपना तकिया ठीक कर लू और गर्माहट की रजाई में घुस जाऊं क्योंकि मैं अंतिम मंजिल से पहले अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहा हूं | सबके बीच से बाहर जाने में आनंद है| आग ,मिट्टी, पानी, हवा और अंतरिक्ष से मिलन का अनोखा आनंद ,जो लंबे समय से तुम्हारी प्रतीक्षा में थे | मेरा मुंह खुला देख वह मुस्कुराई और बोली ,तो मौत से डरो नहीं, उसे बेहिसाब उत्सव से गले लगाओ, जिस उत्सव से जीवन को लगाया है | सच में मेरे रोंगटे खड़े हो गए | मौत के प्रति उनका ऐसा नजरिया मुझे चौंका गया | ©Drishti Nagpal

 रात के लगभग ढाई बज रहे थे | शून्य बटे सन्नाटे में घड़ी की टिक टिक की ध्वनि गूंज रही थी और एक ये नींद जो आने का नाम ही नहीं ले रही थी | बात पिछले महीने वसंत के मौसम की है | मैं और मां राम शरणम् आश्रम में ठहरे हुए थे | बचपन में यहां कभी कभी आना हो जाया करता था मगर इस दफा हफ्ते के लिए ठहरना मेरे लिए नवीन था | यहां की शांति और वातावरण मन मोह लेता है, मानो स्वर्ग सा महसूस करा देता है | नींद ना आने के कारण मैं स्थानीय कक्ष के बरामदे मैं फोन लिए टहलने लगी तो तभी अचानक फोन की टॉर्च की रोशनी में देखा की एक दरवाजा आधा खुला था, जबकि अन्य सारे बंद थे | अंदर जाने पर ज्ञात हुआ कि एक उम्रदराज औरत जाप कर रही थी | कमरे में अन्य और कोई ना था | मैंने आराम से दरवाजा बंद करना चाहा कि एक लड़खड़ाती  आवाज सुनाई पड़ी  "कौन , कौन है?" | मैंने उन्हें दादी जी कहकर संबोधित किया और कहा नींद नहीं आ रही थी, सो थोड़ा टहलने लगी | माफी चाहती हूं आपका ध्यान भंग करने के लिए |उन्होंने बड़ी ही विनम्र ध्वनि में जवाब दिया, "कोई बात नहीं बेटा ,यह तो दिन रात का काम है ,आओ बैठो तो जरा" | टॉर्च की रोशनी में मेरे चेहरे को देख कर प्यारे स्वर में वह बोली ,तुम बिल्कुल मेरी पोती जैसी दिखती हो | यहां से शुरू होकर एक के बाद एक नए किस्से , मानो उनकी एक लंबी कतार जो वह अपने जहन में  जाने कितने वक्त से संजोए बैठी थी | किस्से थे ,आज के ,कल के, बीते ज़माने के | इसी बीच मैंने उनसे एक प्रश्न किया ,दादी जी मृत्यु कितनी डरावनी होती है ना ? कैसे हर कोई खुद को मौत से निगल ना लेने की जद्दोजहद में लगा है | कोई किसी भी उम्र के पड़ाव में क्यों ना पहुंच जाए ,मगर कहता है , अभी मेरी उम्र ही क्या है भला? , मैंने हाथों से इशारा करते हुए कहा | दादी जी हंस पड़ी और बोली-मौत की कला जीने की कला का ही विस्तार है | जीवन से विदाई भी खुशी के चारों ओर ध्वनि और उत्साह के बीच होनी चाहिए |  एक साहसी यात्री के तौर पर अंतिम सीमा का अनुभव करना चाहिए | उस पार कुछ नया होगा इसका पता लगाने में बेसब्र होना चाहिए ना की मृत्यु से डरा जाए | मृत्यु को बताएं ,सौम्या अंदाज में, थोड़ा इंतजार कर ,मैं अपना तकिया ठीक कर लू और गर्माहट की रजाई में घुस जाऊं क्योंकि मैं अंतिम मंजिल से पहले अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहा हूं | सबके बीच से बाहर जाने में आनंद है| आग ,मिट्टी, पानी, हवा और अंतरिक्ष से मिलन का अनोखा आनंद ,जो लंबे समय से तुम्हारी प्रतीक्षा में थे | मेरा मुंह खुला देख वह मुस्कुराई और बोली ,तो मौत से डरो नहीं, उसे बेहिसाब उत्सव से गले लगाओ, जिस उत्सव से जीवन को लगाया है | सच में मेरे रोंगटे खड़े हो गए | मौत के प्रति उनका ऐसा नजरिया मुझे चौंका गया |

©Drishti Nagpal

नजरिया चौंका गया

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🌷तुम आए बारिश बनकर🌷 Neha Pant Nupur SohanDev Ishan sharma "Anand" Megi Asnnani dhyan mira Priya Mishra PREETI AGGARWAL Devwritesforyou Yatin (Calmyaab) Bhawna Mishra Kapil Nayyar Monika pandey Chandramukhi Mourya Bhagat Sudha Tripathi Priya Gour @Anurag Rajput @Ishu Gaur सyyaar @Isha sharma @UTKARSH DWIVEDI

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तुम नए अंदाज़ में मिलने आए थे आज तुम बारिश बन कर आए थे ऐसे आए जैसे किसी ने सोचा ना था ना रोक पाया कोई ,कुदरत का साथ जो था तुम आए तुम बनकर , बिन सजावट , बिन सुगंध ,बूंद बनकर छू गए तुम मीठे फ्फ़वारे बनकर घुल गई में तुममें हवा बनकर बूंदों की छपक ध्वनि ,शब्द बन तुम्हारे बातें कर रहे थे मुझसे बातें जो सच कहती थी,सच सुनती थी पत्तों को नवीन बना दिल पे जमी धूल दूर करती थी तुमने आकर बताया कि प्रेम कितना स्वच्छ है ,कितना साफ ओछा नहीं ,उद्दंड नहीं मचाया करता तुमने आकर बताया कि प्रेम के छोर पर ही दुनिया ये डटी हैं प्रेम हर युद्ध का पुरनविराम हैं बादलों का गरजना संकेत था मानो तुम्हारी विदाई का पर लौटना वापिस लाज़िम था बिना डरे- छुपे, भयहीन होकर ,आजादी से चुकीं मौसम ये बेईमान नहीं बेवफ़ाई तुम्हारे नाम नहीं ©Drishti Nagpal

 तुम नए अंदाज़ में मिलने आए थे
आज तुम बारिश बन कर आए थे
ऐसे आए जैसे किसी ने सोचा ना था
ना रोक पाया कोई ,कुदरत का साथ जो था

तुम आए तुम बनकर , बिन सजावट , बिन सुगंध ,बूंद बनकर
छू गए तुम मीठे फ्फ़वारे बनकर
घुल गई में तुममें हवा बनकर

बूंदों की छपक ध्वनि ,शब्द बन तुम्हारे बातें कर रहे थे मुझसे
बातें जो सच कहती थी,सच सुनती थी
पत्तों को नवीन बना
दिल पे जमी धूल दूर करती थी

तुमने आकर बताया कि
प्रेम कितना स्वच्छ है ,कितना साफ
ओछा नहीं ,उद्दंड नहीं मचाया करता

तुमने आकर बताया कि
प्रेम के  छोर पर ही दुनिया ये डटी हैं
प्रेम हर युद्ध का पुरनविराम हैं 

बादलों का गरजना संकेत था मानो
तुम्हारी विदाई का
पर लौटना वापिस लाज़िम था
बिना डरे- छुपे, भयहीन होकर ,आजादी से

चुकीं मौसम ये बेईमान नहीं
बेवफ़ाई तुम्हारे नाम नहीं

©Drishti Nagpal

बारिश💚🥀

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तुम , हा तुम्हीं तुम कितने सरल हो , कितने सुंदर रूह तुम्हारी पाक हैं आंखों में बुनते कितने ख़्वाब हैं सूरजमुखी की धूप हो तुम तुमसे खिलते सारे बाग हैं तुम जो अपनी आंखें मीच, सांस भर, भुजाएं खोल ,इन हवाओं संग लिपट जाते हो मलिन थे तुम,फिर रूह अपनी साफ पाते हो तुम धीरे धीरे जानने लगते हो अदृश्य हवा का मोल फिर घोलते हो किरदार में अपने गुलाब की सुगंध सब ओर तुम बच्चे हो आज भी खामाखा तुजरबो का मुखौटा लगाए बैठे हो खुद को अच्छा दिखाने में मशरूफ हुए इतने की खुदको भुलाए बैठे हो जानती हूं ज़िन्दगी लंबी शाम हैं जैसे कोई पर क्यों तुम सर झुकाए बैठे हो? होगा नया दिन ,नई उम्मीद से भरा क्यों दिल पे बोझ ढाए बैठे हो? तुम छोड़ आए थे खुद को पीछे दूर कहीं पाया जब ,जब छोड़ी आस जग से सभी बंधी प्रेम की डोर खुदसे आरंभ हुई एक रीत नई आरंभ हुई एक रीत नई ©Drishti Nagpal

#Motivation  तुम ,  हा तुम्हीं

तुम कितने सरल हो , कितने सुंदर
रूह तुम्हारी पाक हैं
आंखों में बुनते कितने ख़्वाब हैं
सूरजमुखी की धूप हो तुम
तुमसे खिलते सारे बाग हैं

तुम जो अपनी आंखें मीच, सांस भर,  भुजाएं खोल ,इन हवाओं संग लिपट जाते हो
मलिन थे  तुम,फिर रूह अपनी साफ पाते हो

तुम धीरे धीरे जानने लगते हो अदृश्य हवा का मोल
फिर घोलते हो किरदार में अपने गुलाब की सुगंध सब ओर

तुम बच्चे हो आज भी 
खामाखा तुजरबो का मुखौटा लगाए बैठे हो
खुद को अच्छा दिखाने में मशरूफ हुए इतने की 
खुदको भुलाए बैठे हो

जानती हूं ज़िन्दगी लंबी शाम हैं जैसे कोई 
पर क्यों तुम सर झुकाए बैठे हो?
होगा नया दिन ,नई उम्मीद से भरा
क्यों दिल पे बोझ ढाए बैठे हो?

तुम छोड़ आए थे खुद को पीछे दूर कहीं
पाया जब ,जब छोड़ी आस जग से सभी
बंधी प्रेम की डोर खुदसे
आरंभ हुई एक रीत नई
आरंभ हुई एक रीत नई

©Drishti Nagpal

#Motivation

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देखो यहां भी मज़बूत बना लिया मैने खुदको जब फाड़ कर जज्बात रूपी कविता मेरी कोशिश की तुमने मेरा "मैं" मिटाने की मगर असफल रहे चुकीं वो महफूज़ है ज़मीर रूपी कोख में मेरी जिन्हें मिटाने के लिए तुम्हें मेरा अस्तित्व मिटाना होगा ©Drishti Nagpal

 देखो यहां भी मज़बूत बना लिया मैने खुदको 


जब फाड़ कर जज्बात रूपी कविता मेरी कोशिश की तुमने मेरा "मैं" मिटाने की
मगर असफल रहे
चुकीं वो महफूज़ है ज़मीर रूपी कोख में मेरी जिन्हें मिटाने के लिए तुम्हें मेरा अस्तित्व मिटाना होगा

©Drishti Nagpal

देखो यहां भी मज़बूत बना लिया मैने खुदको जब फाड़ कर जज्बात रूपी कविता मेरी कोशिश की तुमने मेरा "मैं" मिटाने की मगर असफल रहे चुकीं वो महफूज़ है ज़मीर रूपी कोख में मेरी जिन्हें मिटाने के लिए तुम्हें मेरा अस्तित्व मिटाना होगा ©Drishti Nagpal

55 Love

जिम्मेदार नागरिक हर वो चीज जिससे तुम प्यार करती हो कभी ना कभी खो जाएगी पर अनन्त में को लौट कर आएगी और जो तुम्हारे पास होगी वहीं तुम्हारे लिए सच्चे रूप में बनी होगी रूप भले ही भीन्न होगा मगर प्यार एकदम खालिस होगा ©Drishti Nagpal

 जिम्मेदार नागरिक हर वो चीज जिससे तुम प्यार करती हो कभी ना कभी खो जाएगी
पर अनन्त में को लौट कर आएगी
और जो तुम्हारे पास होगी
वहीं तुम्हारे लिए सच्चे रूप में बनी होगी
रूप भले ही भीन्न होगा
मगर प्यार एकदम खालिस होगा

©Drishti Nagpal

जिम्मेदार नागरिक हर वो चीज जिससे तुम प्यार करती हो कभी ना कभी खो जाएगी पर अनन्त में को लौट कर आएगी और जो तुम्हारे पास होगी वहीं तुम्हारे लिए सच्चे रूप में बनी होगी रूप भले ही भीन्न होगा मगर प्यार एकदम खालिस होगा ©Drishti Nagpal

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