फूलों की महक से चमन महकता न,
जो कीचड़ भरी दुनिया में,कमल खिलता न !
क्यों मिलते इतने तोहफे हिजर ए जुदाई के,
अच्छा होता जो उससे, कभी मिलता न !
मधुशाला है अब तो शताए हुओं का ठिकाना,
बिना उसके दर्द भी सीने में,अब पिघलता न !
बोया बीज जो तेरे दिल की बंजर भूमि में,
वो उगता न, जो मैं मिट्टी होता न !
क्यों आता तेरी गलियों में यूं बेखबर,
जो तू दर्द न देती,तो मैं फिर रोता न !
भूल गया था,कि जालिम है दुनिया,
पता न चलता,जो खुद को खोता न !
जान कर भी अनजान हो गए हम,
जान पाते भी न,जो किसी का होता न !
दुनिया लूटती रहती दर्द के मारे हुओं को,
जो अगर दर्द का बोझ,अकेला मैं ढोता न !
©Thakur Vivek Krishna
#SunSet