फूलों की महक से चमन महकता न, जो कीचड़ भरी दुनिया म | हिंदी शायरी

"फूलों की महक से चमन महकता न, जो कीचड़ भरी दुनिया में,कमल खिलता न ! क्यों मिलते इतने तोहफे हिजर ए जुदाई के, अच्छा होता जो उससे, कभी मिलता न ! मधुशाला है अब तो शताए हुओं का ठिकाना, बिना उसके दर्द भी सीने में,अब पिघलता न ! बोया बीज जो तेरे दिल की बंजर भूमि में, वो उगता न, जो मैं मिट्टी होता न ! क्यों आता तेरी गलियों में यूं बेखबर, जो तू दर्द न देती,तो मैं फिर रोता न ! भूल गया था,कि जालिम है दुनिया, पता न चलता,जो खुद को खोता न ! जान कर भी अनजान हो गए हम, जान पाते भी न,जो किसी का होता न ! दुनिया लूटती रहती दर्द के मारे हुओं को, जो अगर दर्द का बोझ,अकेला मैं ढोता न ! ©Thakur Vivek Krishna"

 फूलों की महक से चमन महकता न,
जो कीचड़ भरी दुनिया में,कमल खिलता न !

क्यों मिलते इतने तोहफे हिजर ए जुदाई के,
अच्छा होता जो उससे, कभी मिलता न !

मधुशाला है अब तो शताए हुओं का ठिकाना,
बिना उसके दर्द भी सीने में,अब पिघलता न !

बोया बीज जो तेरे दिल की बंजर भूमि में,
वो उगता न, जो मैं मिट्टी होता न !

क्यों आता तेरी गलियों में यूं बेखबर,
जो तू दर्द न देती,तो मैं फिर रोता न !

भूल गया था,कि जालिम है दुनिया,
पता न चलता,जो खुद को खोता न !
 
जान कर भी अनजान हो गए हम,
जान पाते भी न,जो किसी का होता न !

दुनिया लूटती रहती दर्द के मारे हुओं को,
 जो अगर दर्द का बोझ,अकेला मैं ढोता न !

©Thakur Vivek Krishna

फूलों की महक से चमन महकता न, जो कीचड़ भरी दुनिया में,कमल खिलता न ! क्यों मिलते इतने तोहफे हिजर ए जुदाई के, अच्छा होता जो उससे, कभी मिलता न ! मधुशाला है अब तो शताए हुओं का ठिकाना, बिना उसके दर्द भी सीने में,अब पिघलता न ! बोया बीज जो तेरे दिल की बंजर भूमि में, वो उगता न, जो मैं मिट्टी होता न ! क्यों आता तेरी गलियों में यूं बेखबर, जो तू दर्द न देती,तो मैं फिर रोता न ! भूल गया था,कि जालिम है दुनिया, पता न चलता,जो खुद को खोता न ! जान कर भी अनजान हो गए हम, जान पाते भी न,जो किसी का होता न ! दुनिया लूटती रहती दर्द के मारे हुओं को, जो अगर दर्द का बोझ,अकेला मैं ढोता न ! ©Thakur Vivek Krishna

#SunSet

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