उल्फ़त के गलियारों में, घूम रहे थे तारों में, | हिंदी कविता

"उल्फ़त के गलियारों में, घूम रहे थे तारों में, आसमान छू लेने को, भटके खूब पहाड़ों में, रेज़ा-रेज़ा बिखर गये, नाम है अब बंजारों में, छपते रहते हैं किस्से, आए दिन अख़बारों में, प्रेम गीत के पन्नों पर, लिक्खे नाम सितारों में, रात-रात भर बातें की, गुपचुप सिर्फ़ इशारों में, गुंजन के मन की पीड़ा, शायद एक हज़ारों में, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra"

 उल्फ़त के गलियारों में,
घूम  रहे  थे   तारों  में,

आसमान  छू  लेने  को,
भटके खूब  पहाड़ों  में,

रेज़ा-रेज़ा  बिखर  गये,
नाम है अब  बंजारों में,

छपते  रहते  हैं  किस्से,
आए दिन अख़बारों में,

प्रेम  गीत  के  पन्नों पर,
लिक्खे नाम सितारों में,

रात-रात भर  बातें  की,
गुपचुप सिर्फ़ इशारों में,

गुंजन के मन की पीड़ा,
शायद  एक  हज़ारों में,
         -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'           
  प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra

उल्फ़त के गलियारों में, घूम रहे थे तारों में, आसमान छू लेने को, भटके खूब पहाड़ों में, रेज़ा-रेज़ा बिखर गये, नाम है अब बंजारों में, छपते रहते हैं किस्से, आए दिन अख़बारों में, प्रेम गीत के पन्नों पर, लिक्खे नाम सितारों में, रात-रात भर बातें की, गुपचुप सिर्फ़ इशारों में, गुंजन के मन की पीड़ा, शायद एक हज़ारों में, -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' प्रयागराज उ०प्र० ©Shashi Bhushan Mishra

#आसमान छू लेने को#

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