ठोकरें तुम लगने भी दो, तज़ुर्बे आते हैं, ज़िन्दगी मे | हिंदी विचार

"ठोकरें तुम लगने भी दो, तज़ुर्बे आते हैं, ज़िन्दगी में अच्छे गुरु, कुछेक ही आते है। इंसानो में कुछ हो न हो, पाप होता ही है, रूहें इसीलिए अब, जिस्मो को छोड़ आते है। आंखों को छू-छू के, देखता हैं मेरी, भीगाने इसे ग़म मेरे, बार बार आते हैं। घर मेरा हैं मिट्टी का, बहुत छोटासा, रिश्तेदार मुझे यहाँ, ज़रा कम नज़र आते हैं। ग़रीब नहीं आता यहाँ, वो एकदम ठीक है, ईस जगह बस रईस, बीमार चले आते है। वो कहती है, हमसा इश्क़ करेगा कौन, चल माँ से मिल, तुझे कंगाल कर आते है। हर रोज़ जो बोझ, मैं लेके चलता हूँ, उठाकर इसे कई, दबके मर जाते हैं। तू क्यों इतना, घूमता हैं 'राजविन' रुक, थक के लौट, सब अपने घर आते है। ©RajVin"

 ठोकरें तुम लगने भी दो, तज़ुर्बे आते हैं,
ज़िन्दगी में अच्छे गुरु, कुछेक ही आते है।

इंसानो में कुछ हो न हो, पाप होता ही है,
रूहें इसीलिए अब, जिस्मो को छोड़ आते है।

आंखों को छू-छू के, देखता हैं मेरी,
भीगाने इसे ग़म मेरे, बार बार आते हैं।

घर मेरा हैं मिट्टी का, बहुत छोटासा,
रिश्तेदार मुझे यहाँ, ज़रा कम नज़र आते हैं।

ग़रीब नहीं आता यहाँ, वो एकदम ठीक है,
ईस जगह बस रईस, बीमार चले आते है।

वो कहती है, हमसा इश्क़ करेगा कौन,
चल माँ से मिल, तुझे कंगाल कर आते है।

हर रोज़ जो बोझ, मैं लेके चलता हूँ,
उठाकर इसे कई, दबके मर जाते हैं।

तू क्यों इतना, घूमता हैं 'राजविन' रुक,
थक के लौट, सब अपने घर आते है।

©RajVin

ठोकरें तुम लगने भी दो, तज़ुर्बे आते हैं, ज़िन्दगी में अच्छे गुरु, कुछेक ही आते है। इंसानो में कुछ हो न हो, पाप होता ही है, रूहें इसीलिए अब, जिस्मो को छोड़ आते है। आंखों को छू-छू के, देखता हैं मेरी, भीगाने इसे ग़म मेरे, बार बार आते हैं। घर मेरा हैं मिट्टी का, बहुत छोटासा, रिश्तेदार मुझे यहाँ, ज़रा कम नज़र आते हैं। ग़रीब नहीं आता यहाँ, वो एकदम ठीक है, ईस जगह बस रईस, बीमार चले आते है। वो कहती है, हमसा इश्क़ करेगा कौन, चल माँ से मिल, तुझे कंगाल कर आते है। हर रोज़ जो बोझ, मैं लेके चलता हूँ, उठाकर इसे कई, दबके मर जाते हैं। तू क्यों इतना, घूमता हैं 'राजविन' रुक, थक के लौट, सब अपने घर आते है। ©RajVin

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