RajVin

RajVin Lives in Pune, Maharashtra, India

बस लिखने की कोशिश करते है।

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#Feeling #Night #speak #true  वाकिफ़ हों मेरे एहसास से,
तो तुम वो कह क्यों नहीं देते?
वही एहसास तुम्हें भी हैं,
तो इश्क़ मेरे नाम का सह क्यों नहीं लेते?

©RajVin

#nojoto #love #Night #speak #Feeling #true

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#SunSet #Night #peace  Sunsets serve as poignant reminders that the culmination of beauty does not necessarily signify the onset of darkness; rather, they evoke a profound sense of tranquility, serenity, and the ethereal allure of the impending night. In their exquisite transition from day to night, sunsets encapsulate a unique harmony between the fading light and the emerging darkness, weaving a tapestry of tranquility and breathtaking beauty that resonates with the soul.

©RajVin

#SunSet #thoughts #Night #peace #Love

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#JourneyOfLife #littlethings #Happiness #Road  Indeed, there exists an understated elegance in the subtleties of life. The simple act of boarding the final bus of the night, guiding one homeward through the dimly lit streets, evokes a unique sense of contentment. It is within these fleeting moments, amidst the quiet hum of the city at rest, that one finds solace and a sweet reminder of life's gentle beauties.

©RajVin

ठोकरें तुम लगने भी दो, तज़ुर्बे आते हैं, ज़िन्दगी में अच्छे गुरु, कुछेक ही आते है। इंसानो में कुछ हो न हो, पाप होता ही है, रूहें इसीलिए अब, जिस्मो को छोड़ आते है। आंखों को छू-छू के, देखता हैं मेरी, भीगाने इसे ग़म मेरे, बार बार आते हैं। घर मेरा हैं मिट्टी का, बहुत छोटासा, रिश्तेदार मुझे यहाँ, ज़रा कम नज़र आते हैं। ग़रीब नहीं आता यहाँ, वो एकदम ठीक है, ईस जगह बस रईस, बीमार चले आते है। वो कहती है, हमसा इश्क़ करेगा कौन, चल माँ से मिल, तुझे कंगाल कर आते है। हर रोज़ जो बोझ, मैं लेके चलता हूँ, उठाकर इसे कई, दबके मर जाते हैं। तू क्यों इतना, घूमता हैं 'राजविन' रुक, थक के लौट, सब अपने घर आते है। ©RajVin

#विचार #experience #Reality #Truth  ठोकरें तुम लगने भी दो, तज़ुर्बे आते हैं,
ज़िन्दगी में अच्छे गुरु, कुछेक ही आते है।

इंसानो में कुछ हो न हो, पाप होता ही है,
रूहें इसीलिए अब, जिस्मो को छोड़ आते है।

आंखों को छू-छू के, देखता हैं मेरी,
भीगाने इसे ग़म मेरे, बार बार आते हैं।

घर मेरा हैं मिट्टी का, बहुत छोटासा,
रिश्तेदार मुझे यहाँ, ज़रा कम नज़र आते हैं।

ग़रीब नहीं आता यहाँ, वो एकदम ठीक है,
ईस जगह बस रईस, बीमार चले आते है।

वो कहती है, हमसा इश्क़ करेगा कौन,
चल माँ से मिल, तुझे कंगाल कर आते है।

हर रोज़ जो बोझ, मैं लेके चलता हूँ,
उठाकर इसे कई, दबके मर जाते हैं।

तू क्यों इतना, घूमता हैं 'राजविन' रुक,
थक के लौट, सब अपने घर आते है।

©RajVin

रुला दे ऐ इश्क़ मुझे अपने मौसम मे, मैं भी ज़रा भिगू और बाग़ बाग़ हो जाऊं। ©RajVin

#विचार #dryleaf #Mousam #ishq  रुला दे ऐ इश्क़ मुझे अपने मौसम मे,
मैं भी ज़रा भिगू और बाग़ बाग़ हो जाऊं।

©RajVin

ख़बर आई हैं, दो सौ लोगो को जलाया गया आज, कहते हैं किसी महामारी ने किया, मैं कहता हूँ हमनेे किया... वो चिंगारी तो हमनेे ही लगाई ना? सदी का सबसे आसान काम मिला है करने को, पर हमें तो निकलना हैं बाहर मरने और मारने को, वो वक़्त नही रहा जहा खुद भगवान उतर आता था मदद को, आज आ भी जाये तो उसपे विश्वास नी करोगे, विज्ञान का आधार लेके उसको कामो को समझाओगे... इसीलिए अपने लोगो को उसने बनाया है, दस साल उसने किसीको किताबों से सिखाया है, तो किसी को जमीन से भूख मिटाने का हुनर बताया है, एक और इंसान नही रहा.. बताओ दफ़नाओगे कि जलाओगे? क्या तुम उसकी बीवी बच्चो को रोज़ खिलाओगे? और बात बात पे मदद के नाम पे खुदको मसीहा कहलाओगे? तरसते थे लोग छुट्टियो के लिए, कहते थे थक गए काम करते करते, पर सच ये नहीं हैं उन्हें घर मे आराम नही चाहिए था, बस भागना था रोज़ मर्रा की एक सी ज़िन्दगी से, आज बन आई है नौकरी पे, अपनी तनखा पे, तो याद आ रहा है... नही ये कुछ लोगो के लिए नही हैं.. हम सब के लिए हैं... हम सब जिम्मेदार हैं... क्यों के हर एक मे कुछ अच्छाई, तो कुछ बुराई है... अरे पैसो के दम वे कितना उड़ोगे? किसी अपने को हो जाएगा तो कैसा करोगे? क्या तब भी अपने पड़ोस में रहने वाले उस डॉक्टर को खदेड़डोगे? अगर है खुदा तो उसे क्या मुँह दिखोगे? क़यामत के दिन क्या उसे भी पैसे खिलाओगे? धर्म जात के नाम पे कितनी दंगे करोगे? एक बार बता ही दो... हिन्दू मुस्लिम कबतक खेलोगे? लो एक और इंसान नही रहा.. बताओ दफ़नाओगे कि जलाओगे?

#stay_home_stay_safe #corona #world #Help #pray  ख़बर आई हैं,
दो सौ लोगो को जलाया गया आज,
कहते हैं किसी महामारी ने किया,
मैं कहता हूँ हमनेे किया...
वो चिंगारी तो हमनेे ही लगाई ना?
सदी का सबसे आसान काम मिला है करने को,
पर हमें तो निकलना हैं बाहर मरने और मारने को,
वो वक़्त नही रहा जहा खुद भगवान उतर आता था मदद को,
आज आ भी जाये तो उसपे विश्वास नी करोगे,
विज्ञान का आधार लेके उसको कामो को समझाओगे...
इसीलिए अपने लोगो को उसने बनाया है,
दस साल उसने किसीको किताबों से सिखाया है,
तो किसी को जमीन से भूख मिटाने का हुनर बताया है,
एक और इंसान नही रहा..
बताओ दफ़नाओगे कि जलाओगे?
क्या तुम उसकी बीवी बच्चो को रोज़ खिलाओगे?
और बात बात पे मदद के नाम पे खुदको मसीहा कहलाओगे?
तरसते थे लोग छुट्टियो के लिए,
कहते थे थक गए काम करते करते,
पर सच ये नहीं हैं उन्हें घर मे आराम नही चाहिए था,
बस भागना था रोज़ मर्रा की एक सी ज़िन्दगी से,
आज बन आई है नौकरी पे,
अपनी तनखा पे,
तो याद आ रहा है...
नही ये कुछ लोगो के लिए नही हैं..
हम सब के लिए हैं...
हम सब जिम्मेदार हैं...
क्यों के हर एक मे कुछ अच्छाई, तो कुछ बुराई है...
अरे पैसो के दम वे कितना उड़ोगे?
किसी अपने को हो जाएगा तो कैसा करोगे?
क्या तब भी अपने पड़ोस में रहने वाले उस डॉक्टर को खदेड़डोगे?
अगर है खुदा तो उसे क्या मुँह दिखोगे?
क़यामत के दिन क्या उसे भी पैसे खिलाओगे?
धर्म जात के नाम पे कितनी दंगे करोगे?
एक बार बता ही दो...
हिन्दू मुस्लिम कबतक खेलोगे?
लो एक और इंसान नही रहा..
बताओ दफ़नाओगे कि जलाओगे?
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