यूँ तो ज़माने में साथी कई हैं मेरे,
मगर ज़रूरतों में तुम याद आते हो,
रोज़ पहर किश्तों में गुज़र जाता है,
मगर ढलती शमा में तुम याद आते हो,
दिन भर बोलती मैं खुश रहती हूँ मगर,
साथ ठहरते अश्कों में तुम याद आते हो,
बात महज़ वक्त की कैद पर आ रुकती है,
साथ वक्त की रिहाई में तुम याद आते हो,
बाद इज़हार हक में इन्तेज़ार लिख गए,
हर इन्तेज़ार में तुम बेशुमार याद आते हो,
-Shubhra Tripathi
Ibrat:)
©Ibrat
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