जमाने भर की दौलत नहीं बस तुम्हारा साथ मागा था
बीच सफर में कभी ना छूटने वाला तुम्हारा हाथ मांगा था
ना ख्वाहिश चांद तारों की ना मौसम बहारों की
जिस हाल में रखते उस हाल मैं खुश रह लेते
तुम्हारे साथ तो जिंदगी के हर सितम भी हस के सह लेते
मोहब्बत में तुम्हारी सब कबूल था हमें
तुम्हीं को अपना मजहब अपना जात माना था
जमाने भर की दौलत........
©Ring roy
मजहब जात ❤️
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