तेरी आँखियों का नूर,मुझे पागल कर देता है |
जहां भी जाऊं मैं, बेचैन कर देता है |
जाऊं कहीं दूर मै, तेरी याद बहुत आती है|
जाने नहीं देती दूर मुझ को, पास बुलाती है|
सोंचता हूँ साथ रहूं, मैं तेरे हमेशा|
खुदा जाने कब ये, करिश्मा होगा ऐसा|
तेरे साथ ही जीना चाहूँ, तेरे साथ ही मरना चाहूँ|
तेरे बिना अब कहीं भी, मैं रह ना पाऊं|
आते हैं तेरी आँखों में आँसू,मेरी बजह से जब भी |
जान निकल जाती मेरी, जैसे सूखी लकड़ी |
होंठों की लाली तेरी, पास बुलाती है|
लगा के गले से मुझे, अपना बनाती है|
जाने नहीं देती मुझे, दूर वो खुद से |
जाने की कहूं भी मैं, वो उदास हो जाती है |
साथ रहूं मैं हमेसा उसके, सायद यही वो चहाती है|
करती है प्यार मुझ से, पर कह नहीं पाती है |...........
तेरी आँखों का नूर